Friday, May 11, 2018

मेरा पहला ख़त तुम्हारे लिये.......

प्रिय बेटा !

बड़ा अजीब लग रहा है बेटा ये शब्द इस्तेमाल करना.... क्योंकि अब तक खुद के लिये ये संबोधन सुनने के आदी थे लेकिन तुमने आकर चंद लम्हों में बढ़प्पन का अहसास करा दिया और मैं इस शब्द से बेहतर कुछ और तुम्हें कहने के लिये नहीं तलाश पा रहा हूँ। तुम्हारे आने से जज़्बात की जो फसल ज़ेहन में ऊगी है उन्हें अल्फाज़ की शक्ल  दे अभी ही इस ख़त में उड़ेल देना चाहता हूँ.... ये जानते हुए भी कि तुम इस ख़त में कही बातों को अरसे बाद ही समझ पाओगे, लेकिन अरसे बाद मैं इन अहसासात को अभी जैसे बयां करने में अशक्य रहूंगा।

24, अप्रैल 2018 की सुबह भी आम दिनों की तरह अलसाई हुई सी ही थी। जागना...और जागकर भागना, अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को जीना बस यही था उस दिन भी। देश राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मना रहा था और मध्यप्रदेश के लिये वो दिन इस मायने में अहम् था कि मंडला जिले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कुछ कार्यक्रमों में शरीक हो रहे थे और पीएम के प्रदेश दौरे के मद्देनजर मेरे लिये दूरदर्शन में ये दिन आम दिनों के बनिस्बत थोड़ा ज्यादा व्यस्त था। तुम्हारी माँ का रुटीन चेकअप था पर कुछ कॉम्पलिकेशन के चलते वही दिन तुम्हारे आगमन का दिन बन पड़ा। तुम सामने थे... चंद घंटों में तुम हमारे ख़यालों के आसमान से उतरकर हक़ीकत की ज़मीं पर थे। इन चंद घंटों में तुम्हारे स्वागत की कुछ खास तैयारी भी न कर सके थे हम...पर तुम्हारा सामने होना हमारे लिये अन्य तमाम चीजों से ज्यादा अहम् था इसलिये कैसे इस लम्हे को जीये ये सोचने का वक़्त भी नहीं ही था समझो।

दुनिया के लिये और कुकुरमुत्तों की तरह बिखरी मीडिया के लिये तुम कोई हेडलाइन नहीं थे.... तुम से कुछ मिनटों पहले यू ट्यूब पर राजकुमार हिरानी की फिल्म "संजू" का ट्रेलर लांच हुआ था जो तुम्हारे होने तक लाखों व्युअर्स की हिट पा चुका था... उस दिन क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर का जन्मदिन था लिहाजा ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी इन्हीं की भरमार थी (जब तुम होश संभालो तब शायद ये सब अप्रासंगिक हो चुके हों पर अभी तो इंसान की ज़िंदगी का आधे से ज्यादा टाइम यही खा रहे हैं)। सड़क परिवहन मंत्री ने सडक सुरक्षा सप्ताह शुरु किया था, मध्यप्रदेश को सड़कों का ढांचा सुधारने इसी दिन 258 मिलियन डॉलर का कर्ज मिला था, दादा साहेब फाल्के अवार्ड की घोषणा हुई थी, भारत ने आठवीं एशियन जूडो चैंपियनशिप जीती थी, एक रात पहले ही आईपीएल के 11वे संस्करण में हैदराबाद ने लोएस्ट टोटल को बचाते हुए मुंबई इंडियन्स को हराया था। वहीं अंतरराष्ट्रीय फलक पर देखें तो कनाडा और युरोपीय युनियन द्वारा दुनिया की महिला विदेश मंत्रियों का पहला सम्मेलन आयोजित किया गया था, चाइना में शंघाई समन्वय संगठन की बैठक चल रही थी, इजिप्ट के फोटोग्राफर मोहम्मद अबू जैद को युनेस्को द्वारा वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम पुरस्कार मिला था, फिल्मप्रेमी चार दिन बाद रिलीज़ होने वाली हॉलीवुड मूवी एवेंजर्स-3 का इंतज़ार कर रहे थे। और तुम, हर रोज़ पैदा होने वाले लाखों बच्चों की तरह एक सामान्य सी घटना भर थे... दुनिया के लिये तुम बस उन लाखों की ही तरह थे.... पर हमारे लिये तुम दुनिया थे या युं कहें उन लाखों में अकेले एक थे।

ऊपर कही गई तमाम बातें इसलिये भी हैं कि भविष्य में कभी अहंकार के रथ पर सवार हो खुद को इतना बड़ा न समझ लेना कि दुनिया बोनी नज़र आने लगे... हमारी ये भौतिक हस्ती इस ब्रह्मांड की अनंतों घटनाओं के सामने कुछ भी नहीं है लेकिन आध्यात्मिक हस्ती अनुपम, अद्वितीय, बहुमूल्य और इकलौती ही है। एक बात और साफ कर दूं...कि तुम एक लड़के के रूप में हमारे बीच आये इसलिये तुम बहुत खास हो ऐसा बिल्कुल नहीं है... तुम जिस रूप में हमारे सामने आते तुम उतने ही खास होते जितने अभी हो। ये इसलिये याद दिलाना जरुरी है कि बेटा-बेटी के बीच गैरबराबरी की खाई गहराने वाले इस जहाँ में तुम खुद को कहीं आधी आबादी से कुछ विशेष न मान बैठो और हमारी सांस्कृतिक रग़ों में बहने वाले रुढ़िवाद एवं पितृसत्तात्मक सोच के ज़हर का असर तुम पर न आने पाये। तुम्हारे आने से ये दुनिया बेहतर नहीं हुई है इसे बेहतर बनाये रखने के लिये तुम्हें अपना बहुत कुछ झोंकना होगा।

तुम आज जैसे हो यदि अंदरुनी तौर पर ऐसे ही रहो तो यक़ीन मानना ये दुनिया तुम्हारी पूजा करेगी लेकिन मुझे पता है कि हम और हमारे आसपास का परिसर तुम्हें ऐसा नहीं रहने देगा। हम तुम्हें कुछ सिखाने के नाम पर तुमसे तुम्हारी मासूमियम, तुम्हारी निश्छलता सब कुछ छीन लेंगे। जिन असल दैवीय गुणों के साथ तुम आये हो उसे हम रहने नहीं देंगे और हमें ये दंभ होगा कि हमने तुम्हें शिक्षित कर दिया। एक बात समझ सको तो ज़रूर समझना कि दुनिया की तालीमें तुम्हें सिर्फ पैसा और कोरी पद-प्रतिष्ठा दिला सकती हैं लेकिन मानवीय मूल्यों को तुम अपनी सहज प्रज्ञा के बल पर ही पा सकोगे। सही-ग़लत का निर्णय करने का विवेक... बहुत दुर्लभ चीज़ है जो वास्तव में अपने से ही आता है। यदि तुम ऐसा विवेक, सरलता और निश्छलता अपने व्यक्तित्व में ला सके तो तुम दुनिया में भीड़ का हिस्सा न होकर कुछ चुनिंदा लोगों में से एक होगे।

एक बात और जो मैं बतौर अध्यापक अपने विद्यार्थियों को समझाते आया हूँ वो तुमसे भी कहना चाहूँगा... कि प्रतिभा और चरित्र में से हमेशा चरित्र को तवज्जो देना, हुनर या प्रतिभा को नहीं क्योंकि प्रतिभावान तो कई लोग होते हैं पर उन्हें महानता उनका चरित्र दिलाता है। वहीं यदि प्रतिभा और पैसे में से कुछ चुनना हो तो पैसे को नहीं, प्रतिभा को चुनना क्योंकि जो कौशल तुम हासिल करोगे वो ज़िंदगी भर काम आयेगा...पैसा हमेशा काम नहीं आ सकता। और हाँ यदि पैसे को चुनना ही हो तो उसे व्यसन (बुरी आदतों) पर वरीयता देना, भले लोग तुम्हें कंजूस, खूसठ, खड़ूस या जो कुछ भी क्यों न कहें क्योंकि जिस दौर में मैं जी रहा हूँ वहीं विलासिता और भोगवादी संस्कृति अपने चरम पर है तुम्हारे वक्त तो जाने कौन-सा परिदृश्य होगा; अंदाजा लगाना मुमकिन नहीं... ऐसे में खुद का वजूद उन हरकतों से बचाना बेहद जरुरी है इसलिये पैसा भले खूब हो तुम्हारे पास, लेकिन उसका प्रयोग उस विलासिता में न हो ये आरजू मेरी हमेशा रहेगी। असल मे तो तुम्हारे संस्कार ही तुम्हारी वास्तविक पूंजी है........और हाँ यदि चंद वक्त की बुरी आदत और बुरी संगति में से किसी एक को चुनना पड़ ही जाये तो चंद वक्त की बुरी आदत के फेर में पड़ जाना पर बुरी संगति से तौबा ही करना। यदि ये चयन सिद्धांत अपना सके...तो भरोसा रखना तुम कभी कुछ गलत नहीं चुनोगे।

संबंधों को वस्तुओं की तुलना में अधिक महत्व देना क्योंकि इस दुनिया में लोग अपनी-अपनी मशरुफियत और स्वार्थ में अंधे हो एक निर्जन टापू की तरह हो गये हैं। संबंध, स्वार्थों की भट्टी में तप रहे हैं और उसमें ही पक रहे हैं। मैं चाहूँगा कि तुम्हारे लिये इंसान किसी भी दूसरी निर्जीव या अटकलपच्चू विचार की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण रहें। जिस देश में तुम जन्मे हो वहां की विविधता तुम्हें कन्फ्यूज भी करेगी और हैरान भी लेकिन अपने पूर्वाग्रहों में इतने अंधे मत हो जाना कि तुम्हारे विचारों से विपरीत सोच रखने वाला व्यक्ति तुम्हारी नफरत का नुमाइंदा बन जाये। प्रेम बड़ी कठिन चीज़ है और यदि करने का मिजाज़ आ गया तो बड़ी आसान भी.... मैं नहीं मानता कि दुनिया में शायद ही कोई ऐसा काम हो जो प्रेम से न हो सके और हमें नफरत की जरूरत पड़े। विश्वास करना और विश्वास जीतना दोनों ही सीखना... विश्वास की भी दुनिया को बहुत जरुरत है।

तुम अपने जीवन में बहुत शोहरत न कमा सको तो इसका कोई मलाल मत रखना... थोड़े ही सही पर उन चंद लोगों के बीच प्रतिष्ठित होना ज्यादा बड़ी बात है। महत्वपूर्ण यह नहीं कि कितने लोग तुम्हें जानते हैं महत्वपूर्ण ये है कि कितने लोग तुम्हें वास्तव में चाहते हैं। लोगों का प्रेम पाना... प्रेम देने से भी कठिन है यदि पा गये तो समझो जी गये। अपने जीते जी ज़ेहन में ये बात भी ज़िंदा रखना जरुरी है कि हम बहुत थोड़े समय के लिये अपने इस रूप में दुनिया में है हम इसे अपने योगदान से बहुत बेहतर भले न बना पायें लेकिन यदि हमारे अदने से प्रयास इसे बद्तर होने से बचा लें तो ये भी कम नहीं है। त्याग और समर्पण भी बड़े दुर्लभ गुण हैं यदि ये हममें है तो कुदरत ने हमें इंसान बनाके ग़लत नहीं किया। 

कुछ बातें तुमसे उन चीज़ों के बारे में भी करना है जो चीज़ें खुद अपने बारे में कुछ जुवां से अभिव्यक्त नहीं करतीं। ये धरती संसाधनों से भरी पड़ी है यदि हम उनका सदुपयोग कर सकें तो। संसाधन तब ही कम होते हैं जब हम उन्हें हड़पने या उनके दुरुपयोग की मंशा रखते हैं। पृकृति की उन चीज़ों के प्रति भी संवेदनशील रहना जो अपने प्रति संवेदना की भीख, कहकर नहीं मांगतीं। ये नदियां, ये जंगल, ये हवा, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आदि सब हमारे जीवन से अंतर्संबंध रखने वाले हैं, हमारा परिवार ही हैं इनके प्रति भी संवेदनशील होना बहुत जरुरी है। इस संवेदना में सर्वगुण समाहित हो जाते हैं। दुनिया में सच्चा मूल्य उन्हीं चीज़ों का है, जिन पर कोई प्राइस टैग नहीं लगा है।

यूं तो बहुत कुछ है जो कहा जाये... ऊपर कही बातों में से अधिकांश तुम्हें सैद्धांतिक ही लग रही होंगी। दुनिया के लिये ये सैद्धांतिक बनी हुई हैं इसलिये जगत में सकारात्मक बदलाव देखने को कम ही मिल पाते हैं ये सैद्धांतिक बातें प्रयोग के धरातल पर जितनी-जितनी साकार होती जायेंगी उतना बदलाव और आनंद तुम्हें महसूस होगा। मानव संभावनाओं का आकाश है तो दायरों का सेतूबंध भी है। संभाव्य को संभव बनाने की कोशिश करना, किंतु सफल न होने पर हताश मत होना क्योंकि उस पल से आगे जहाँ और भी हैं और वो समय, वो दिन विशेष बुरा हो सकता है किंतु पूरा जीवन कभी अर्थहीन नहीं होता। 

रोना, परेशान होना, झुकना, रुकना पर थम ही मत जाना.... बुरे को भुलाके आगे बढ़ना और अच्छा पाके आत्ममुग्धता या गुरुर में गाफिल मत हो जाना। यदि इस दुनिया में कुछ निश्चित है तो वो है परिवर्तन, बाकी और सब 'बस कुछ समय' का ही है। बहुत कुछ खोजना, बहुत कुछ जानना लेकिन सब कुछ खोजने और जानने से ज्यादा जरुरी है आत्म-अनुसंधान। खुद के इस भौतिक परिचय से दूर वास्तविक परिचय की खोज। यदि अपनी उपलब्ध प्रज्ञा से उस छुपी प्रज्ञा को पा गये तो पाने को कुछ बाकी न रहेगा और फिर दुनिया की तुच्छ चीज़ें खुद ब खुद तुम्हारी नज़र में अपना मूल्य खो देंगी। तुम ऐसा कुछ कर सको तो यकीनन मुझे खुशी होगी... लेकिन मेरे कहे रास्तों से परे अपनी असल मंजिल को पाने के रास्ते भी कई हैं और उन रास्तों को तुम्हें खुद इज़ाद करना होगा। संघर्ष बहुत है... लेकिन अपने हौसले को ये मत बताना कि संघर्ष कितना बड़ा है बल्कि अपने संघर्ष को ये बताना कि तुम्हारा हौसला कितना बड़ा है। 

इतना सब कहकर भी जज़्बात का कतरा ही बयाँ हुआ है पर जितना कहा, तुम उसमें छुपे मर्म को ठीक से समझ सको और खुद एक बेहतर इंसान बनो, बस यही छोटी सी ख़्वाहिश है। 

असीम आशीषों के साथ........ 

27 comments:

  1. हाईलाइट तो कमाल के हैं ही लेकिन जो उनका विश्लेषण है वो दिल नहीं छूता है बल्कि झकझोरता है
    पीयूष

    ReplyDelete
  2. केवल तुम्हारें पुत्र के लिए नहीं,हर एक पुत्र के लिए अनुकरणीय बातें।
    पिता का पुत्र के लिए भावुकता मय संवेदनशील पत्र जो एक दस्तावेज की तरह पथ प्रदर्शन का काम करेगा

    ReplyDelete
  3. अद्भुत भाईसाब
    और बधाईयां भी

    ReplyDelete
  4. अद्भुत भाईसाब
    और बधाईयां भी

    ReplyDelete
  5. बहुत बहुत बधाईयां भाईसाहब। यह पत्र निश्चित रूप से सभी पिता और पुत्रों के लिए अनुकरणीय है।

    ReplyDelete
  6. वाह बेटे को उसके जन्म पर ऐसा अनूठा उपहार...... क्या बात है ।

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर लेख एवं समस्त लौकिक एवं पारलौकिक सीख समझ और शिक्षायें।

    ReplyDelete
  8. शुकनासोपदेश के बाद अलग और सलीके की संजीदा इच्छा.. शायद ही संवेदना की शक्ल ले पाये... पर जो भी हो. .. लिखते बड़ा कमाल हो.. इसलिये तो हम आपके मुरीद हैं... ऐसे ही लिखते रहो.. बढ़ते रहो.. पढ़ते रहो. गढ़ते रहो.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार भाईसाहब। मुरीद तो हम भी आपके हैं 😊

      Delete
  9. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ज़िन्दगी का बुलबुला - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  10. एक ऐसा पत्र जिसे हर पिता को अपने पुत्र को पढ़कर सुनाना चाहिए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका 🙏🏻🙏🏻

      Delete
  11. Marm sparshi vichar...Ankur g Bahut shubhkamnaye...hamara Bhatije ko shubhashish...

    ReplyDelete
  12. Kya bolu me bhaisahab... आँखों मे आँसू भर आये है।। क्या कुछ नहीं कह दिया इसमें आपने...

    बहुत गहराई छुपी है इसमें...

    I love this post...

    ReplyDelete
  13. नैसर्गिक भावों को कलम करने की कला विरलों मे ही होती है,इस कला मे माहिर तो थे ही अब महारथी भी हो गए वर्तमान परिपेक्ष्य मे ऐसे विचार निश्चित ही मील का पत्थर साबित होंगे । अद्भुत अप्रतिम

    ReplyDelete
  14. वाह भाईसाब!गजब....

    ReplyDelete
  15. अंकुर जी,यह खत दुनिया के हर पिता द्वारा अपने बेटे को बहुत ही भावपूर्ण तरीके से लिखा हुआ हैं ऐसा प्रतीत होता है। दिल को छूता हुआ। बहुत सुंदर।

    ReplyDelete

इस ब्लॉग पे पड़ी हुई किसी सामग्री ने आपके जज़्बातों या विचारों के सुकून में कुछ ख़लल डाली हो या उन्हें अनावश्यक मचलने पर मजबूर किया हो तो मुझे उससे वाकिफ़ ज़रूर करायें...मुझसे सहमत या असहमत होने का आपको पूरा हक़ है.....आपकी प्रतिक्रियाएं मेरे लिए ऑक्सीजन की तरह हैं-