Thursday, May 9, 2019

तुमसे ही इतना सीखा...क्या तुम्हें सिखा दूं मैं !!! (सफ़र साल भर का)

प्रिय तत्वार्थ,


व्यस्तताओं, असंख्य अनुभवों एवं नित नये-नये अहसासात से लवरेज़ बीता एक वर्ष कैसे बीता और हवा के तेज झोंके के मानिंद साल के 365 रोज़ कैसे उड़ गये...  पता ही न चला। इस एक वर्ष में कुछ ऐसे जज्बात ज़ेहन की जमीं पर चस्पा हुए जो कई किताबों, फिल्मों या व्याख्यानों को पढ़-देख-सुन भी समझ पाना मुमकिन नहीं था। गुजिश्ता वर्ष में मिली तालीम के अध्यापक तुम्हीं हो, जिसने बताया कि खुद की महत्वाकांक्षाओं का बौना होना क्या होता है... जिसने बताया त्याग, समर्पण और वात्सल्य की समृद्ध परंपरा के बारे में जो हमें अपने पूर्वजों से मिलती चली आ रही है। तुम्हारे लिये ये मेरा दूसरा ख़त है इसे भी तुम अरसे बाद ही समझ सकोगे पर जो तुम्हें देखकर मेैं अभी कहना चाहता हूँ उसके लिये मैंअरसे का इंतजार नहीं कर सकता क्योंकि फिर ये अहसास ऐसे न रह सकेंगे जो अभी हैं।

तुम्हें बढ़ता हुआ देख, बहुत कुछ सिखाने को जी चाहता है लेकिन यकीन मानो तुम्हारी अपनी उत्प्रेरणाओं से जो कुछ भी तुम सीख रहे हो और सहज ही जो कुछ हमें सिखा रहे हो उसके आगे कुछ भी तुम्हें सिखाना मुझे खुद के बौनेपन का अहसास कराता है। दिल तो यही कहता है कि बालत्व के कुछ गुणों को तुम हमेशा बनाये रखो जिन्हें देख हमें बारंबार उन गुणों के चलते तुमपे प्रेम आता है। उम्र और शरीर से बड़े हो जाने के बाद भी कई असल बढ़प्पन के वे गुण हम सब लोगों में नजर नहीं आते जो इस निश्छल, निष्काम बचपन में तुम धारण किये हुए हो। पता नहीं वक्त के साथ इनमें से कितने गुणों को संजोकर तुम आगे ले जा सकोगे।

अपने कार्यक्षेत्र से लौटकर घर पहुंचने पर तुम्हारी मासूम मुस्कान को देख सारी थकान चली जाती है इतनी निस्पृह मुस्कानें आखिर बड़े लोगों की दुनिया में दिखती ही कहां है यहां तो मुस्कुराहटों के पीछे लालसाएं छिपी हैं न जाने कौन सी मुस्कान हमें छलने का चक्रव्यूह है हम समझ ही नहीं पाते। चोट खाकर अपने दर्द को क्षण में भुला देना और किसी नये नजारे या खिलौने में खुद को व्यस्त कर फिर ताजगी से भर जाने का हुुनर तुम में ही हो सकता है। इंसान बड़ा होकर ग़म से रीतना ही नहीं सीख पाता, अरसे पहले मिली चोटों के ज़ख्म भर जाने के बरसों बाद भी उनके ग़म से व्यक्ति भरा रहता है। कहो तो जरा ये अदा तुममे आई कहां से।

तुमपे अपना सर्वस्व लुटाके ही ये सीख पाया कि हमारे माता-पिता क्या कुछ हमारे लिये करते हैं। रातों में रतजगे होने के बाद भी तरोताजा सुबह तभी हो सकती है जब कोई निरपेक्ष प्रेम की ऊष्मा हमें मिली हो। बार-बार गिरके सतत् प्रयास करना क्या होता है भला बता सकता है कोई ज्ञान का पुरोधा हमें। अक्सर, सैद्धांतिक बातों में ही होने वाले बड़े-बड़े उपदेशों को व्यवहारिक जीवन में चरितार्थ होते देखा जा सकता है बचपन में। भले उन सैद्धांतिक बातों का कखग भी शाब्दिक तौर पर न समझते हो तुम। इस अंतः स्फूर्त प्रेरणा को जीवन के आगामी सोपानों पर जाने कहां गंवा देते हैं हम; जो बचपन में चलने, दौड़ने, बोलने और नित नया सीखने की सर्वोत्तम उत्प्रेरणा है। पहली करवट, पहला कदम, पहले लफ्ज़... और जाने क्या-क्या जो कुछ पहला तुम्हारे जीवन में अब तक हुआ वो आगे की तमाम उपलब्धियों से बड़ा है। इस पहला कर पाने की स्वप्रेरणा को यदि तुम कायम रख सके तो विश्वास मानो जमाने द्वारा तय किये गये सफलता के शिखर बौने नज़र आयेंगे तुम्हें।

तुम किसी धर्म, संप्रदाय या दार्शनिक ग्रंथों में बंधकर कुछ सीखने के मोहताज नहीं। मुझे तो लगता है कि इस निश्छल बचपन को देख ही शायद धर्मग्रंथों के उद्गार लिखे गये होंगे। मोह, माया, काम, क्रोध, अभिमान या लोभ की वृत्तियां हममें जमाने की तालीम मिलने के बाद पनपती हैं बचपन तो स्वतः इन दुर्दांत वृत्तियों से रिक्त ही होता है। तुम जब हंसना चाहते हो तो हंसते हो, जब रोना चाहते हो तो रोते हो पर हम सब ऐसे नहीं है हम आंसूओं और मुस्कुराहटों के साथ आंखमिचोली करते हैं। झूठा मुस्कुराते हैं, आंसू छुपाते हैं और खुद को मजबूत दिखाने के मिथ्या अभिनय करते हैं पर तुम हमें हमसे भी ज्यादा मजबूत नजर आते हो क्योंकि तुम निडर होकर हर जोखिम लेने के लिये तत्पर होते हो। वे जोखिम ही तुम्हें सिखाते हैं तथा और भी बड़ा बनाते हैं।

इस वर्ष भर के सफर में हमने बदलती हुई तुम्हारी अदायें देखीं, कुछ सीखने के बाद उन अदाओं में निरंतर आये बदलाव को देखा और उस हर छोटी-छोटी सीखते हुए बदलने की अदा ने तुम पर बारंबार हमें फिदा किया। ये सीखने की वृत्ति बनाये रखना, जो अभी नैसर्गिक तौर पर तुम में विद्यमान है। अपने आसपास की छोटी छोटी चीज़ों का आनंद लेने की कला हम बड़े होकर गंवा देते हैं पर अभी तुम ऐसे नहीं हो। छोटी-छोटी चीज़ों में खुशियां तलाशना बहुत बड़ा हुनर है पर ये भी उम्र के पड़ाव हमसे छीन लेते हैं। पौधों की पत्तियां, फूलों, मिट्टी, पानी और जानवरों के प्रति वर्तने वाला तुम्हारा प्रेम बड़ा अद्भुत है। हम बड़े होकर इन सबके प्रति निष्ठुर हो जाते हैं इन सबके प्रति प्रेम बनाये रखना, क्योंकि इन सबने तुम्हें बचपन में बहुत हंसने के मौके दिये हैं।

इस गुजरे वर्ष में तुमने शब्दों को कम समझा पर मुस्कानों को बखूब समझा। किसी की एक मुस्कुराहट और उसका सतत दीदार तुम्हें उसके करीब लाने के लिये काफी रही और चेहरे को पढ़ने के इस हुनर ने ही तुम्हें संबंधों को विस्तार देने में मदद की। इन संबंधों में तुम्हारा कोई छल नहीं था न कोई लालच। संबंध गर इसी तरह तुम गढ़ते रहे तो रिश्तों में कभी बिखराव नहीं देखोगे। काश ये चीज़ हम तुम से सीख सकते, क्योंकि यहां अपने अहंकार को पुष्ट करते हुए ही हम संबंध रखते हैं और उन संबंधों में बेइंतहा लालसाएं होती हैं। ज़रा सी गलतियों पर रिश्ते बिखर जाते हैं पर तुम गलतियों को मुस्कुराहटों से बौना समझते हो। तुम्हें संभालने में गर हमसे कोई गलती हुई और उस कारण तु्म्हें चोट मिली तब भी तुमने हमारी मुस्कुराहट और प्रेम के आगे उस गलती को भुला दिया। दूसरों से माफी मांगने में पीछे मत रहना और माफ करने के लिये भी तत्पर रहना। इससे तुम अपने चित्त को कभी भारी न होने दोगे... और दिलोदिमाग के हल्केपन के साथ निष्चिंत जी सकोगे जैसे अभी जी रहे हो... बेफिक्र, बेखौफ और बिंदास।

याद रखना तुम्हारे साथ तुम्हारे चाचा का बेटा, तु्म्हारा भाई श्रद्धान भी कम या कुछ ज्यादा सीखते हुए बढ़ रहा है अमूमन महीने भर के अंतराल से तुम दोनों का हमारे परिवार में आने से कई चुनौतियों का सामना हमने किया। हो सकता है किसी को कम या ज्यादा सुविधाएं भी मिली हों लेकिन ज़ेहन में किसी के प्रति कम या ज्यादा लगाव हो ऐसा नहीं है। इस साथ को बनाये रखना... चुंकि तुम बड़े हो इसलिये इस रिश्ते में तुम बढ़प्पन दिखाना। ज्यादा देना, कम लेना। विपत्तियों में तुम आगे रहना और उपलब्धियों में अपने भाई को आगे करना। आज से बीस वर्ष बाद ऐसा प्रेम तुम्हें अपने आसपास देखने मिले इसकी मोहताजगी मत रखना... प्रेरणा लेने से बेहतर है खुद एक प्रेरणा बन जाना।

और तो बहुत कुछ अपने पिछले खत में मैं कह चुका हूं उसे यहां भी जानना। कहने को अब भी बहुत है पर कम कहा ज्यादा समझना। उम्मीदें बहुत हैंं जो हर पिता को होती हैं पर हमें पता है तुम अपनी योग्यता अनुसार ही बढ़ोगे। हमारी अपेक्षाएं और कर्तत्व का अहंकार एक भ्रम है.... पर इस ख़याली सुख से कुछ मुस्कानें हम भी चुनौतियों के बीच पा लेते हैं इसलिये असल से बेहतर ये भ्रम जान पड़ते हैं। तुम बढ़ो और खुद को खुद से गढ़ो इसी आशीष के साथ... जीवन के पहले वर्ष का सफल सफ़र मुबारक हो।