Tuesday, December 30, 2014

धोनी! बस एक यही सरप्राइस अच्छा नहीं लगा...

वर्ष 2014 का अंत इस ख़बर से होगा उम्मीद नहीं थी...क्रिकेट और क्रिकेट प्रेमियों के लिये शायद सबसे बड़ी ब्रेकिंग। लेकिन एक ऐसी ब्रेकिंग जो कतई अपेक्षित नहीं थी। हालांकि यह सही है कि आस्ट्रेलिया में चल रही मौजूदा टेस्ट सीरिज़ में इंडिया कुछ कमाल नहीं कर पा रही थी और हर कोई धोनी की कप्तानी पर सवाल उठा रहा था और उन्हें कप्तानी छोड़ने की नसीहतें दे रहा था। लेकिन वे महज कप्तानी ही नहीं बल्कि टेस्ट क्रिकेट को भी अलविदा कह देंगे ये किसी ने नहीं सोचा था। सिर्फ 33 वर्ष की उम्र में ये फैसला बहादुरी भरा है और धोनी के नज़रिये से देखा जाय तो यह सही भी होगा...पर क्रिकेट प्रेमियो को यह रास इसलिये नहीं आ रहा क्योंकि किसी को भी क्रिकेट के इस महानतम योद्धा को आलीशान विदाई देने का अवसर नहीं मिला..या कहें कि हम ठीक से अलविदा न कह सके...और जुदा होने से ज्यादा दुखदायी होता है किसी को ठीक से अलविदा न कह पाना।

वर्ष 2007। धोनी पहली मर्तबा कप्तान बने और यह सिलसिला तब से ही शुरु हुआ। भारत को न सिर्फ जीतना सिखाया..बल्कि अधिकारपूर्ण जीत और टीम का वर्चस्व कैसा होना चाहिये यह भी उन्होंने ही बताया अपने निर्णयों से सरप्राइज देने का सिलसिला भी उन्होंने पहले ही मैच से शुरु कर दिया। जब पहले टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप के टाई हुए पहले मैच में अंतिम निर्णय बॉल आउट के ज़रिये होना था..और धुर विरोधी पाकिस्तान के खिलाफ धोनी ने अपने रेगुलर बॉलर्स की तुलना में सेहवाग और उथप्पा से गेंद फिकवाकर वो मैच जीता। इसी तरह उस वर्ल्ड कप के फाइनल में अंतिम और निर्णायक ओवर जोगिंदर सिंह जैसे चलताऊ गेंदबाज से करवाया...लेकिन बावजूद इसके टीम को जीत का स्वाद चखाया और आगे चलकर इसकी आदत डाली। इस तरह के सरप्राइजेस से भरा उनका पूरा करियर ही रहा।

जब कप्तानी मिली तो जिम्मेदारी भी बढ़ी और इस खिलाड़ी ने टीम हित में निजी स्वार्थों को ताक पर रखकर कई कड़े फैसले लिये। जैसे खुद की बैटिंग पोजिशन में बदलाव। शुरुआत में वे तीसरे नंबर पर खेलने आते थे और उस नंबर पर खेेलते हुए उन्होंने वनडे क्रिकेट की अपनी श्रेष्ठ पारियां (183 और 148 रन) खेली। लेकिन बाद में धोनी छठवे-सातवे नंबर पर सिर्फ इसलिये खेले ताकि निचले क्रम को मजबूती दे सके और परिस्थितियों के अनूरूप टीम को संबल प्रदान कर सकें। अपने बल्लेबाजी क्रम में ज़रूरत के मुताबिक बाद में भी कई परिवर्तन किये। कभी वे आठवे नंबर भी खेले और ज़रूरत पढ़ने पर चौथे या वापस तीसरे नंबर पर भी खेलने उतरे। 2011 के क्रिकेट वर्ल्ड कप का फायनल कौन भूल सकता है जहाँ तीसरे नंबर पर बेटिंग कर मुश्किल में फंसी टीम को न सिर्फ परेशानी से बाहर निकाला बल्कि नायाब 91 रन बनाकर भारत को अट्ठाईस साल बाद वनडे विश्व कप जिताया। 

धोनी, शुरुआत में अपनी आक्रामक शैली के लिये जाने जाते थे पर वक्त के साथ उन्होंने अपने रवैये में खासा परिवर्तन किया। कौन भूल सकता है 2007 में इंग्लैण्ड में हुए लार्ड्स टेस्ट मैच को..जब धोनी ने लगभग पूरे दिन बल्लेबाजी कर 203 गेंदों में मात्र 76 रन बनाये और निचले क्रम के साथ मिलकर तकरीबन हारा हुआ मैच ड्रा कराया। बाद मे भारत ने यह टेस्ट सीरिज़ 1-0 से जीती। इसी तरह मेलबोर्न में हुए अपने अंतिम मैच में भी धोनी ने अपने प्रवृत्ति के विरुद्ध बल्लेबाजी से अश्विन के साथ मिलकर मैच को ड्रा कराने में सफलता पाई। यह सारी चीज़ें सिर्फ टीम हित में..क्योंकि यदि धोनी हमेशा अपना स्वाभाविक गेम और बल्लेबाजी में ऊपरी क्रम पर खेलते तो उनके व्यक्तिगत रिकॉर्ड कई बेहतर हो सकते थे जो कि आज हैं। इन परिवर्तनों को देख हम कह सकते हैं कि वक्त के साथ वे अपनी युएसपी माने जाने वाले लंबे बालों को छोटा करते गये पर उनका कद लगातार बढ़ता गया। 

कैप्टन कूल के नाम से प्रसिद्ध इस खिलाड़ी की सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक है इनकी सहजता। ये जीत को जितनी संजीदगी से स्वीकार करते हैं उतने ही धैर्य से अपनी हार और असफलताओं को भी लेते हैं। न इन्हें जीत में बौराना आता है न ही हार में बिखरना। मुझे अच्छे से याद है जब 2007 वनडे वर्ल्डकप में मिली शुरुआती हार के बाद लोगों ने धोनी के घर पर तोड़-फोड़ की थी तब धोनी ने कहा था एक दिन यही लोग मेरे घर की दीवार खड़ी करेंगे। 2011 विश्वकप के बाद यह सच साबित हुआ। इसी तरह 2011 विश्वकप जीतने के बाद जहाँ टीम के खिलाड़ियों के साथ पूरा देश खुशी में पागल हो रहा था तब धोनी के चेहरे पर मात्र एक संजीदा मुस्कान और साम्यता देखी जा सकती थी। गोयाकि धोनी अपने व्यक्तित्व से गीता के स्थिरप्रज्ञ की अवधारणा को जीवंत करते हैं। अनुशासन, धैर्य और लक्ष्य पर तीक्ष्ण नज़र ये चीज़ें भी धोनी से ग्रहण की जा सकती है। यही वजह है कि मैच की अंतिम गेंद तक वे आपा नहीं खोते और आखिर तक प्रयासरत रहते हैं।

एक बेहद सामान्य परिवार और पृष्ठभुमि से आये धोनी...यह साबित करते हैं कि सफलता, संसाधनों की मोहताज नहीं होती..और संसाधनों का पर्याय तो मिल सकता है पर प्रतिभा का पर्याय नहीं मिलता। असीम शोहरत और पैसा कमाने के बावजूद वे संयमित रहे...और कंट्रोवर्सी से दूर। आईपीएल घोटाले मामले में चैन्नई सुपर किंग का नाम उछला पर धोनी ने तब भी सिर्फ वहीं फोकस किया जो उनका वास्तविक काम था। उनके इसी आचरण ने किसी को भी उन पर उंगली उठाना के मौका नहीं दिया। वो कहते हैं न कि आप सिर्फ अपने चरित्र की रक्षा कीजिये आपका यश आपकी स्वयमेव रक्षा कर लेगा। कुछ ऐसा ही धोनी के साथ हुआ। सामान्य से चेहरे-मोहरे वाला युवा देश का स्टाइल आइकॉन बना, ट्रेन में टीटीई की नौकरी करने वाला ये युवा देश का सबसे अमीर सेलीब्रिटी भी बना, लड़कियों में उनका पागलपन छाया और बॉलीवुड में उनकी दीवानगी को बताने वाली 'हैट्रिक' जैैसी फ़िल्म भी बनी..पर इस तमाम चौंधियाने वाली शोहरत के बावजूद उनका ध्यान कभी अपने लक्ष्य से ओझल न हुआ। धोनी के ऐसे कई उदाहरण पेश किये जा सकते हैं जो आज के युवा के लिये प्रेरणादायी हो सकते हैं..क्योंकि सफलता और उसकी निरंतरता सिर्फ प्रतिभा पर निर्भर नहीं करती..उसके पीछे सतत् संघर्ष और मजबूत चरित्र बेहद ज़रुरी होता है।

बहरहाल, धोनी क्रिकेट के इस महत्वपूर्ण फॉरमेट को छोड़कर जा रहे हैं लेकिन अब भी वे हमें वनडे और टी-ट्वेंटी में नज़र आते रहेंगे और हम उम्मीद करेंगे कि इस एक फॉरमेट को छोड़ने से उनका वनडे और टी-ट्वेंटी करियर काफी लंबा हो..और अपनी कप्तानी में वे देश को 2015 का विश्वकप जिताकर एक बार फिर झूमने का मौका देंगे..यह काम धोनी के लिये कोई मुश्किल नहीं है क्योंकि टी-ट्वेंटी और वनडे विश्वकप, आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी, टेस्ट में टीम इंडिया को नंबर वन का खिताब के अलावा अपनी टीम चैन्नई सुपर किंग को दो बार आईपीएल और इतनी ही बार चैंपियंस लीग टी-ट्वेंटी का खिताब जिताया...कहते हैं जीतना एक आदत होती है और धोनी को यह लत बहुत पहले ही पड़ चुकी थी..उम्मीद है वे फिर जीतेंगे। धोनी के इस रिटायरमेंट पर उनके साथी खिलाड़ी सुरेश रैना द्वारा किया ट्वीट काफी सही साबित होता है कि धोनी ने बहादुरों की तरह अगुआई की और बहादुरों की तरह ही विदाई ली। 

4 comments:

  1. सही कहा आपने इस तरह के निर्णय भी धोनी जैसे लोग ही कर सकते हैं।

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  2. हम धोनी के निर्णय का सम्मान करते हैं.

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  3. पर क्या निर्णय देश हित में है ... अचानक चले जाना ...
    पच नहीं रहा ...

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  4. धोनी का जाना बहुत बुरा लगा

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