Friday, April 30, 2010

खिलंदड अक्षय, व्यावसायिक सिनेमा और हॉउसफुल

आईपीएल के भूत के सोने के बाद सिल्वर स्क्रीन पर रिलीज़ हुई हाउसफुल। साजिद खान द्वारा निर्देशित और अक्षय कुमार -दीपिका पादुकोण जैसे सितारों से सजी फिल्म के प्रोमो देख लगता था कि बोलीवुड को एक और उम्दा फिल्म मिलेगी। लेकिन अफ़सोस ये भी खिलंदड अक्षयनुमा फिल्म है जिसे कमबख्त इश्क, हे बेबी, दे दनादन टायप की फिल्मों में ही शुमार किया जा सकता है।

अक्षय कुमार की ब्रांड वैल्यू इस समय शाहरुख़, आमिर, हृतिक जितनी ही है बजाय इसके कि उनके हिस्से कोई भी महानतम फिल्म नहीं है जिसे चकदे, तारे ज़मीन पर या कोई मिल गया की कोटि में शामिल किया जा सके। लेकिन पिछले एक दशक की फिल्मों पर यदि नज़र डाली जाये तो हम पाएंगे की फिल्म इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा कमाई यदि किसी ने करके दी है तो वो है अक्षय कुमार। सन २००७ में तो उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को ५०० करोड़ की सौगात दी थी, और पिछले सालों में रिलीज़ उनकी टशन, कमबख्त इश्क, ब्लू जैसी फिल्मों की कमाई ६०-७० करोड़ के आसपास है जबकि इनको फ्लॉप या औसत कामयाब फ़िल्में माना गया है। तारे ज़मीन पर और वेलकम एक ही दिन रिलीज़ हुयी थी, तारे ज़मीन पर ने महान फिल्म होने के बावजूद बमुश्किल ५० करोड़ का व्यवसाय किया जबकि दूसरी ओर वेलकम की कमाई १०० करोड़ के ऊपर थी।

तो क्या इन सारे समीकरणों के चलते अक्षय कुमार को महान सितारा मान लिया जाये? क्या व्यावसायिकता को महानता का पर्याय समझा जाये? यदि ऐसा है तो एक वैश्या किसी शास्त्रीय न्रित्यांगना से महान होगी, जेम्स कैमरून, सत्यजीत रे से बड़े निर्देशक होंगे, आईपीएल टेस्ट क्रिकेट से अधिक श्रेष्ठ होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। अक्षय कुमार ने समय के साथ खुद को काफी परिपक्व बनाया है और आज वे एक हरफनमौला अदाकार है लेकिन फिल्म चयन और समर्पण में वे मात खा जाते हैं। यही कारण है की २० साल के उनके करियर के बावजूद उनके पास कोई DDLJ, हम आपके हैं कौन, लगान, रंग दे बसंती जैसा नगीना नहीं है। अपने सारे करियर में वे अपने एक्शन और खिलंदड स्वरुप में जकड़े रहे। जिस इन्सान में इतनी क़ाबलियत थी की वह कई महान कृतियों को जन्म दे सकता था लेकिन वो ताउम्र कुछ औसत महान फिल्मों के इर्द-गिर्द घूमता रहा।

बहरहाल बात यदि हाउसफुल की करें तो यह फिल्म तो अक्षय की हेरा-फेरी, भूल-भुलैया,मुझसे शादी करोगी टायप की उम्दा फिल्मों में से भी नहीं है। ऐसा लगता है की साजिद मार-मारके जबरन हँसाने की कोशिश कर रहे हैं। शायद ये फिल्म हिट भी हो जाएगी क्योंकि फिल्म को हिट कराने वाले सजिदनुमा सभी मसाले इसमें पड़े हुए हैं और प्रारंभिक भीड़ देखकर यही लगता है। साजिद ने 'हे बेबी' की बची-कुची कसर इसमें निकाल ली है। लेकिन इन सारी चीजों के कारण फिल्म को बेहतर नही कहा जायेगा। अक्षय कुमार जिन्होंने इस फिल्म में पनौती का किरदार निभाया है उनकी रियल लाइफ की अच्छी किस्मत का फायदा फिल्म को जरूर मिलेगा। छोटे शहरों और कस्बों में अक्षय के दीवाने इसे हिट करा देंगे। लेकिन गुणवत्ता परक फिल्म देखने वालों को निराश होना पड़ेगा।
अब तो उम्मीदें हृतिक की 'काइट्स' और प्रकाश झा की 'राजनीति' से ही है.....