Wednesday, November 25, 2015

ये हौसला कैसे झुके!!!


ज़िंदगी के अहसासों को डायरी में समेटना कईयों का शौक होता है और हममें से कई लोग अपने रोजमर्रा की घटनाओं, अनुभवों, खुशी और ग़म के पल को अल्फाजों में पिरो कुछ-कुछ राहत महसूस करते हैं। कागज़ों पे अहसासों को उकेरना भी किसी से बातें करने के समान ही होता है। लेकिन जब आपके कुछ अहसास ऐसे भी हों जिनकी अभिव्यक्ति दूसरोें की हौसला अफजाई में मदद कर सकें तो उन्हें सार्वजनिक करना एक उत्तम विचार ही कहा जायेगा।

जिंदगी के एक ऐसे ही कड़वे अनुभवों से दो-चार होने के बाद जब मैंनें उन्हें सिर्फ स्वांत-सुखाय और स्वप्रेरणार्थ डायरी में लिखा तो ये नहीं पता था कि ये पुस्तक की शक्ल लेगा। लेकिन जब ये विचार साकार हुआ और इसे लोगों ने सराहा तो मनोबल में अतीव ऊर्जा का संचार हुआ। मेरे अनुभवों की डायरी, जो लिखी तो किसी खास घटनाक्रम को लेकर है लेकिन इसका उद्देश्य संकुचित न हो अति विस्तृत है। इस डायरी को पुस्तक का रूप दिया है पंजाब के रिगी पब्लिकेशन ने और जुलाई में प्रकाशित होने के बाद से अब तक एक हजार से ज्यादा इसकी प्रतियां बिकना...अंतस में अतीव प्रसन्नता का संचार करने वाली खबर है।


सृजन, भले सराहना से पैदा न होता हो लेकिन प्रेरित जरूर होता है। अच्छा लगता है जब साहित्य के समंदर में हमारे सृजन के लघुतम प्रयासों के भी कुछ बिन्दु बिखरें और उन्हें लोग सराहें। 

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 YE HAUSLA KAISE JHUKE

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पुस्तक पर आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।