Thursday, April 7, 2011

मैं कोई कवि नही....

कविता करना कोई मजाक नही

जो हम जैसे नौसिखिये कर सके

ये तो एक साधना है

जो संगिनी है साधकों की...

बेचैन हूँ मै पर,

मैं कोई कवि नही...............


जब चरम तन्हाईयों के दौर में

दोस्त हो जाते हैं दूर

तो कागजों से बातें करता हूँ

कविता के जरिये

हैरान हूँ मैं पर

मैं कोई कवि नही...........


जब भर जाता है दिल दर्द से लबालब

तो छलकने लगता है वो

रूह के प्यालों से शराब बनकर

और फ़ैल जाता है वो

इन कागजों की जमीं पर

मतवाला हूँ मैं पर

मैं कोई कवि नही.................


जब अपनों की दगा से

प्रियतम की झूठी वफ़ा से

जगता है मन में रोष

तो इन कागजों के समंदर में

शब्दों के पत्थर फेंक देता हूँ....

दीवाना हूँ मैं पर मैं कोई कवि नही..................


(c) अंकुर 'अंश'