कई महीनों पहले एक टेलीविज़न चैनल के लांचिग प्रोमो का प्रचार कुछ इस अंदाज में किया गया था कि ज़िंदगी में 'ख़ुशहाली' ज़रुरी है पर उससे भी ज्यादा ज़रुरी है 'ख़ुशी' का होना... क्योंकि ज़िंदगी की खुबसूरती के मापदण्ड 'खुशी' से तय किये जा सकते हैं 'खुशहाली' से नहीं। जिंदगी के मापदण्ड तौलने के लिए तो 'ख़ुशी' को एक स्केल के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है पर 'खु़शी' को तौलने वाला स्केल कैसे निर्धारित किया जा सकता है? गोयाकि वैज्ञानिक साधन-संपन्नता वाले विश्व में हर चीज़ की माप है पर दर्द, त्रासदी और ख़ुशी को मापने वाला पैमाना अब तक नहीं बन पाया।
प्रसिद्ध लेखक पाओलो कोएल्हो ने अपने एक लेख में कुछ इस तरह के विचार व्यक्त किए थे कि दुनिया में हम लोगों की जितनी मुस्कुराहटों भरी तस्वीर देख रहे हैं वो मुस्कानें सिर्फ लोगों के चेहरे पर उतनी देर के लिए थी जब उनकी तस्वीर ली जा रही थी। ज़िंदगी की आपाधापी में सहज मुस्कानें तो कबकी मर चुकी हैं...या फिर जो मुस्कानें कदाचित् कुछ देर के लिए दिख भी रही हैं उन्होंने इसके लिए बड़ी कीमत चुकाई है। आमिर ख़ान की आगामी फ़िल्म 'तलाश' के एक गीत में जावेद अख्तर ने भी कुछ ऐसा ही फरमाया है कि "मुस्कानें झूठी है..पहचानें झूठी है"। पहचान और मुस्कान की हैसियत टिशु पेपर की तरह हो गई है जो सिर्फ शरीफों की महफिलों में 'वेलमेनर्स' कहलाए जाने का एक ज़रिया मात्र है। यहां एक बात मैं स्पष्ट किए देता हुं कि पाओलो कोएल्हो तो मुस्कुराहट अर्थात् हंसी को ही महंगा कह रहे हैं जबकि हंसी और खुशी दोनों बहुत अलग चीजें हैं। हंसोड़ो की महफिल तो हर गली-नुक्कड़-चौराहों पे मिल जाएगी पर एक अदद खुश इंसान खोज पाना बहुत मुश्किल है।
अंग्रेजी की एक कहावत है "Happiness is a interval between the period of unhappiness"...इसमें ख़ुशी के वक्त को त्रासद समय का महज एक अंतराल कहा है। लेकिन इस अंतराल की तलाश में एक बहुत बड़ा वक्त ज़ाया होता है जो दरअसल किसी भी तरह के अर्थ को लिए हुए नहीं है...जिसमें न खुशी है न ग़म। लेकिन जिसमें हम दिन का या कहें जिंदगी का काफी वक्त गुजारते हैं...और वो चीजें हैं हमारे रोजमर्रा के काम..जिसे हम रूटीन(Routine) भी कहते हैं। जो कि बिना किसी विशिष्ट अर्थ के हर दिन हमें खुद में लगाए रहते हैं..और हद तब हो जाती है जब इन रोजमर्रा के कामों में बिताया जाने वाला वक्त इतना लंबा हो जाता है कि कुछ दूसरा सोचने का वक्त भी हमारे पास नहीं होता। ये सारा समय महज एक तलाश है, एक इंतज़ार है मुस्कुराहटों या खुशी के चंद लम्हें पाने का...और अक्सर इस तलाश के बाद भी हमें वो लम्हें हासिल नहीं होते, उल्टा इस रूटीन में ही व्यवधान पैदा हो जाता है तब इंसान खुशी के उन लम्हों को भुलाकर अपने उस रुटीन को ही वापस पाना चाहता है...और अपने उस रूटीन या तलाश को पाकर ही कुछ सुखी सा अनुभव करता है। शायद इसी चीज को देखते हुए प्रसिद्ध इटेलियन फ़िल्म निर्देशक तारकोवस्की ने कहा था कि "मैं जी कहां रहा हूं मैं तो बस इंतज़ार कर रहा हूं...हर पल, हर श्वांस के साथ...बहुत छोटी-छोटी चीजों का"।
जिंदगी की कवायद उसे एक अर्थ देने के लिए हैं...पर उस अर्थ के ही अर्थ खो गए हैं। तमाम भावनाओं, रिश्ते-नातों, प्रेम, दोस्ती, पैसा, शोहरत, भौतिक संसाधनों, धर्म आदि में उस अर्थ की ही तलाश की जा रही है। जो लोग इतनी गहराई में जाए बगेर ज़िंदगी जी रहें हैं उन्हें भले अपनी इस तलाश की फिजिक्स-कैमिस्ट्री का पता नहीं हैं पर ये तलाश उनके दिल में भी है...और Something is missing की टीस उन्हें भी साल रही है। लेकिन ज़िंदगी को मायने फिर भी नहीं मिल रहे हैं...और कहीं न कहीं इंसान के मन में इस बात पर विचार करने की जिज्ञासा भी नहीं है कि जिंदगी के मायने क्या हैं...क्योंकि जो खालीपन प्रकृति से कदाचित् इन बातों पर विचार करने के लिए मिलता भी है वो खालीपन ही बोझ सा मालूम पड़ता है। टाइमपास एक बहुत बड़ा मुद्दा है...और इस टाइमपास के लिए ही सारा बाज़ार सजा पड़ा है। पर बाज़ार में खुशी-खुशहाली खोजने गया इंसान कब खुद बिकने लगता है उसे खुद पता नहीं चलता।
इस ऊहापोह में 'खुशी' शब्द के आगे हमेशा प्रश्नचिन्ह लगा रहता है...और प्रश्नचिन्ह को देखने की आदत कुछ ऐसी हो जाती है कि हमें इसका जबाब खोजना है ये बात ही भुला दी जाती है। लोगों के माथे पर पड़ी सलबटें, चेहरे की शिकन, बेवश निगाहें और झूठी मुस्कानें माहौल में एक डर घोल रही है और उस डर की बिसात पर हर कोई नितांत स्वार्थी होकर नयी-नयी चालें चल रहा है। उन चालों के भंवर में अगला कदम बढ़ाने से ही घबराहट होती हैं और ज़िंदगी, मौत से कठिन मालूम होती है।
बहरहाल, अपने-अपने नज़रिये की बात है...एक जीवन वो भी है जो सत्य को पूरी तरह नज़रअंदाज करके खिलंदड़ की तरह जीवन जीता है और एक जीवन वो है जहां सत्य, जीवन पे इस क़दर हावी है कि उसने जिंदगी को डर के आगोश में ले लिया है...पर इन सब बातों में सिर्फ एक बात बहुत पक्की हैं कि जिंदगी बहुत खास होती है, बहुत खूबसूरत होती है चाहे वो कैसी भी क्युं न हो और उसे हमेशा सर्वोपरि रखके जीना सबसे ज़रूरी है। अतः रब से इस बात का अफसोस ज़ाहिर करना कि 'हमें जिंदगी में मजा करने के लिए फलां साधन नहीं मिला ' एक बेतुकी बात है...क्योंकि हमें जिंदगी मिली है हर साधन का मज़ा लेने के लिए।