दो बड़े सितारे, दो बड़ी फ़िल्में मुकाबला महज फिल्म को हिट-सुपरहिट कराने का नहीं था, मुकाबला था बादशाहत का। मुकाबले में इंडस्ट्री के दो बड़े सितारे शुमार थे और ये इनके बीच पहला मुकाबला नहीं था। इससे पहले भी ये रब की जोड़ी और गजनी को मैदान में लड़ा चुके हैं। उस दौरान आमिर ने बाद में ज़िम्मा संभाला था इस बार शाहरुख़ बाद में मैदान में आये।
बहरहाल परिणाम सबके सामने आ चूका है '३ इडियट्स ' हिंदी सिनेमा की सर्वकालिक महान फिल्मों में शामिल हो गयी है जबकि 'माय नेम इज खान' शाहरुख़ की खुद की फिल्मों में ही सर्वश्रेष्ठ नहीं है। न तो ये ' चकदे ' जैसी क्रिटिकली हिट है नाही DDLJ या 'कुछ-कुछ होताहै ' जैसी कमर्शियल हिट है। एक बेहद औसत फिल्म है जिसे शाहरुख़ महानतम होने का भ्रम पाल रहे हैं।
आमिर ने हमेशा आग में हाथ डालकर नगीने बाहर निकाले हैं। चाहे आशुतोष गोवारिकर की वो स्क्रिप्ट हो जिसे दर्जनों दरबाजों पर नकार दिया था उसी स्क्रिप्ट पर आमिर ने 'लगान' रचकर आस्कर का दरबाजा खटखटाया। 'तारे ज़मीन पर जैसे नान कमर्शियल सब्जेक्ट पर सिनेमा बनाकर वाहवाही लूटी। 'अक्स' जैसी फ्लाप फिल्म के निर्देशक से 'रंग दे बसंती' जैसी महान फिल्म बनवाई। वहीँ शाहरुख़ की सारी सफलता चोपड़ा केम्प के इर्द-गिर्द घूमकर दम तोड़ देती है और जब वे खुद फिल्म निर्माण में उतरते हैं तो 'हे राम', 'फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी' और 'बिल्लू' जैसे डिब्बों को जन्म देते हैं।
'माय नेम इज खान' का विषय उम्दा था और ये एक बेहद उम्दा फिल्म हो सकती थी अगर ये शाहरुख़ के प्रभाव से मुक्त होकर मात्र करण जौहर की फिल्म होती। प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे ने कहा था कि ''शाहरुख़ पूरी फिल्म में इस भाव से ग्रस्त नज़र आ रहे हैं मानो वे कोई इतिहास रचने जा रहे है' इस भाव के करण ही शाहरुख़ स्वाभाविक शाहरुख़ नहीं रह जाते।
सारी फिल्म एक विशिष्ट पक्ष की ओर झुकी है इस फिल्म से ज्यादा निष्पक्ष प्रस्तुतिकरण करण की 'कुर्बान' में देखने को मिला। फिल्म के संवाद और काजोल का अभिनय तारीफे काबिल है। बाकि पूरी फिल्म एक खास वर्ग की ही तालिया बटोरसकी। ये एक कम्प्लीट पैकेज नहीं हैं। शाहरुख़ को बाला साहेब का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिनके कारण फिल्म को शुरूआती भीड़ मिल गयी। फिल्म देखकर मीडिया कि हकीकत भी जान पड़ती है जो वेश्यावत बर्ताव करती है। मीडिया चेनल जिस भांति फिल्म का महिमा मंडन कर रहे थे वैसा फिल्म में कुछ नहीं है। वे सभी चेनल फिल्म के मीडिया पार्टनर थे।
दूसरी ओर बात 'थ्री इडियट्स ' की हो तो नाम सुनते ही दिल में गुदगुदी होने लगती है। इस फिल्म कि सफलता का कारण मात्र आमिर हों ऐसी बात नहीं है वे तो बस इस सफलता में शुमार कई लोगों में से एक हैं। लेकिन फिल्म चयन और समर्पण उनका अपना है। लोग कहते हैं फिल्म निर्माण में आमिर दखलंदाजी करते हैं मगर इस फिल्म में यदि हिरानी सही थे तो उन्होंने कुछ सुधार नहीं किया तथा उनके हाथ कि कठपुतली बनना ही मंज़ूर किया।
शाहरुख़ और आमिर में कौन श्रेष्ठ है ये मैं बताना नहीं चाहता, ये सबकी अपनी-अपनी पसंद है। मैं सिर्फ उस फिल्म कि तारीफ कर रहा हूँ जो लोगों के लिए एक फिल्म से बढकर एक पुराण बन गयी। उस फिल्म के विषय में शाहरुख़ कहते हैं कि उन्होंने अब तक 'थ्री इडियट्स' नहीं देखी। आप हीसोचिये-क्या ऐसा हो सकता है? या यह महज झूठी बांग है। और यदि ये सच है तो शाहरुख़ के अभाग्य की महिमा हमसे तो नहीं कही जा सकती। शाहरुख़ ये फिल्म देखें और कुछ सीखने का प्रयास करें।
खैर, दोनों खान बढ़िया सितारे हैं। बस दोनों में जरा सा अंतर है। आमिर समझदार इन्सान है और शाहरुख़ ज्यादा समझदार इन्सान है।
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
differences r nice
ReplyDeleteSwagat hai..
ReplyDeleteme aapki bat se puri tarah se sahmat hu ki aamir kuch jyada hi samajdar hai....acche lekh ke liye dhanabad........
ReplyDeletei genuinely liked ur post & writing style...the flow is natural & so is ur write up on urself...
ReplyDeleteCarry on & on & on...
बेहतरीन आलेख । लिखते रहे । स्वागत है
ReplyDeleteगुलमोहर का फूल
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDelete