Friday, June 4, 2010

ये है मुंबई मेरी जान.......


पिछले हफ्ते एक बेहद खुबसूरत शहर और करोड़ों लोगों की धड़कन मुंबई शहर को बेहद करीब से देखने का अनुभव हुआ । देखकर लगा कि आखिर क्यों इसे मायानगरी या नशीला शहर कहते हैं। हालाँकि ये मेरा पहला मुंबई भ्रमण नहीं था लेकिन पिछली बार यहाँ अपने कॉलेज के साथ शैक्षणिक भ्रमण पर आना हुआ था। उस समय तो दोस्तों के साथ मस्ती में ही कुछ यूँ मशगूल थे कि इस शहर को समझने का मौका ही नहीं मिला। तब इस शहर के सम्बन्ध में मेरी धारणा कुछ अलग थी, अब एक अलग धारणा है।

जितनी बार इस शहर का नाम बदला उससे कही ज्यादा बार इसकी संस्कृति,रीति-रिबाज़, रहन-सहन बदला अब ये शहर महज एक शहर नहीं बल्कि एक अलग ही स्वप्न संसार, एक अलग ही दुनिया बन गया है।
मुंबई ह़र काल में लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा है,यह देश की व्यावसायिक राजधानी है। ये शहर अपने में जिंदगी के हर रंग समेटे है, मन के सभी रस, दिल की भावनाएं, दुनिया की खुशियाँ और दुनिया का दर्द हर चीज़ के दर्शन आपको इस नाचीज शहर में हो जायेंगे।

जी हाँ यही शहर है जहाँ सड़क से संसद तक की, अर्श से फर्श की, नालों से महलों तक, झुग्गी से बग्घी तक की जिंदगी के दर्शन हम कर सकते हैं। लाखों लोग यहाँ आते हैं और यहीं के हो जाते हैं। पहले वे इस शहर को पकड़ना चाहते हैं फिर ये शहर ही उन्हें पकड़ लेता है कि भले ही वे इसे छोड़ना चाहे पर यह शहर उन्हें नहीं छोड़ता। फिल्म texi no.9 2 11 में एक गीत कुछ इस प्रकार है-"लाख-लाख लोग आके बस जाते हैं इस शहर से दिल लगा के फंस जाते हैं, सोने की राहों पर सोने को जगह नहीं..शोला है या है बिजुरिया दिल की बजरिया मुंबई नगरिया..."

भले ही मुंबई के इर्द-गिर्द समुद्र है लेकिन उससे भी संगीन समुद्र यह मुंबई शहर खुद है जो अपने देश के हर वर्ग, हर क्षेत्र, हर संस्कृति के व्यक्ति को समाये हुए है और हर व्यक्ति के पेट के चूहे मार रहा है। यहाँ आकर हर व्यक्ति कुछ न कुछ पा जाता है कोई बहुत ज्यादा पाता है तो कोई थोडा कम। लेकिन इससे भी बड़ा सच है जो हमने 'मेट्रो' फिल्म के एक संवाद में सुना है "कि ये शहर जितना हमें देता है उससे कही ज्यादा हमसे छीन लेता है"।

दरअसल
जब भी किसी के दिमाग में मुंबई का चेहरा उभरता है तो उसकी नज़र बड़ी-बड़ी आलिशान बिल्डिंग, शोपिंग काम्प्लेक्स, मल्टी प्लेक्स पर तो जाती है पर हजारों वर्गफीट में फैली धारावी की झुग्गियां नहीं दिखती जहाँ समृद्ध लोगों की अपेक्षा कई गुना तादाद में लोग रहते हैंउसकी नज़र फिल्म सिटी, बालीवुड पर तो जाती है पर वह नाले किनारे बसने वाली जिंदगी से बेखबर हैवो बोम्बे स्टॉक एक्सचेंज को देखता है पर चौपाटी पर बड़ा पाव बेचता कल्लू उसे नहीं दिखताफैशन जगत की चकाचौंध तो दिखती है पर ट्रेफिक सिग्नल पर पेपर बेचता बच्चा और भीख मांगती अम्मा नहीं दिखतीयह किसी आश्चर्य से कम नहीं कि हम मुंबई जाके शाहरुख़ का 'मन्नत' और अमिताभ का 'जलसा' देखना चाहते हैं पर हमारे दिमाग में बिरजू नाई और भोलू हम्माल के वो आशियाने नहीं आते जिनमे वो जिंदगियां बसती है जो हमसे दो मीठे बोल को तरस रही हैइस शहर से उड़ने वाले वो विमान दिखते हैं जो अमेरिका, सिंगापूर, लन्दन जाते हैं पर लोकल ट्रेन की पेलमपेल पर नज़र नहीं जाती

दुर्भाग्य ये है कि जिन चीजों पर हमारी नज़र नहीं जाती वही असली मुंबई है, वही सच्ची और बृहद मुंबई है। हमने हमारी अंखियों के झरोखों से दिखने वाले नजारों को भी संकुचित कर लिया है और जिस शहर को देखा है वो तो पुस्तक का सिर्फ मुख पृष्ठ है अन्दर के पन्नो से हम अनजान है। मुंबई की असली जिंदगी तो इस शहर के कालीन के नीचे पल रही है। इस शहर में ट्रेफिक प्रॉब्लम के कारण गाड़ियों की रफ़्तार धीमी हो जाती है पर गाड़ियों की उस धीमी रफ़्तार के बीच जिंदगी भागती रहती है।

लोग कहते हैं यहाँ का इन्सान बहुत खड़ूस और चिड़चिड़ा होता है पर ऐसा कहने वालो के भी सिर और कंधे पर वजन रखकर, उनके पैर बांधकर दौड़ने को कहा जाय तो वे भी संगीत का मधुर तराना नहीं सुनायेंगे। मुंबई के आदमी की जिंदगी शायद ऐसी ही है, चिडचिडाहट आना लाजमी है। ये एक वो शहर है जो अपने में कई शहर, कई प्रदेश, कई देश या यूँ कहे कि कई दुनिया समेटे है। मुंबई को समझना सिर्फ मुंबई को समझना नहीं है एक अच्छी-खासी दुनिया को समझना है।

वैसे तो मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी है, पर ये महज महाराष्ट्र की नहीं ये सारे राष्ट्र की है सारे देश का दिल इसमें बसता है पर राजनैतिक मुर्खता के परिचायक राज ठाकरे जैसे लोगों को ये कौन समझाए, जो अपने देश में ही सरहदें बना रहे हैं। समझ नहीं आता कि काम का बोझ सिर पर रखने के कारण कहीं इस इन्सान का दिमाग घुटनों में तो नहीं आ गया, शायद इसलिए आज घुटनों के दर्द की शिकायत बढ रही है।

खैर, मुंबई के व्यक्ति के लिए तो हम ये कह सकते हैं कि वो जिंदगी जीते समय अपने भगवान को ये नहीं बताता कि उसकी परेशानियाँ कितनी बड़ी है बल्कि अपनी परेशानियों को ये बताता है कि उसका भगवान कितना बड़ा है। यही सोचकर बस जिंदगी जीता चला जाता है।

ये मुंबई अपने आप में एक पुराण है, एक ग्रन्थ है, एक महाकाव्य है जब इसके भाव को विचारकर पड़ोगे तो आँखे नम भी होगी, दिल में गम भी होगा, थोड़ी ख़ुशी तो थोडा गुस्सा भी आएगा पर अंततः आप एक मजबूत और परिपक्व इन्सान बन जाओगे। मेरी कलम का इस मुंबई गाथा का बखान करने में दम फूल रहा है विशेष तो आप खुद इसे महसूस करके देखें...शायद आप खुद बेहतर ढंग से जन पाए। अंत में २ पंक्तिया याद कर विराम लूँगा-
इन बंद कमरों में मेरा दम घुटता है,
खिड़कियाँ खोलो तो ज़हरीली हवा अन्दर आती है....

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