Saturday, April 6, 2013

तेरे जाने के मायने.....

(*इन दिनों एक लघु उपन्यास का लेखन कर रहा हूँ..ये पोस्ट उसी लेखन का एक हिस्सा है...जिसमें नायक-नायिका के संबंध-विच्छेद के बाद नायक अपनी पीड़ा एक ख़त के ज़रिये बयां करता है..जिसे आप सबके समक्ष सार्वजनिक कर रहा हूँ-)

आगे बढ़ो...कितना आसान होता है किसी से कह देना कि 'तुम सब कुछ भुलाके आगे बढ़ो'...और इंसान आगे बढ़ भी जाता है पर जिंदगी के कुछ धुंधले और उजले स्याह हिस्से वक्त की दीवार पर युंही चस्पा रह जाते हैं हमेशा के लिए। तुम्हारे जाने से ऐसा नहीं कि मैं जीना छोड़ दूंगा..या छोड़ दूंगा हंसना, मुस्कुराना या अपनी हसरतों को पंख देना...वो तो बाकायदा बने रहेंगे मेरी जिंदगी में...पर उन सबके होने के बावजूद, होगा मेरी मुस्कुराहटों में एक पेंच..हसरतों में अधूरापन, और हर सुवह के साथ रोज़ पलटते जिंदगी के बेरंग पन्ने। बाकी कुछ नहीं बदलेगा..और मैं आगे बढ़ता रहुंगा, सांसे चलती रहेंगी...तुम्हारे जाने से आखिर क्या रुकने वाला है?

गर कुछ अखरता भी है तो वो मेरा पागलपन है..वैसे भी ख्वाहिशें बड़ी मूर्ख होती हैं जो अब भी चाहती है कि तुम्हारे चेहरे पर किसी भी परेशानी के कारण पड़ी सलवटों को, तुम्हें गले से लगाकर दूर कर दूं...या फिर तुम्हारे गोलगप्पों के लिए बच्चों की तरह मचलने पर, उन्हें तुम्हारे सामने हाजिर कर दूं...मूर्खताएं, बस इतनी ही थोड़ी है इन उम्मीदों की मूर्खता का कहाँ तक बखान करूं... जो आज भी कोई नई बात पता चलने पर, सबसे पहले उन्हें बताने के लिए तुम्हें ही तलाशती हैं या फिर वो तुम्हारे लिए आंसू बहाने को भी तुम्हारे कंधे का इंतजार करती हैं। पर 'सब कुछ भुलाके आगे बढ़ो' ये मामुली से लफ्ज़ कहकर तुमने मुझसे वो सारे हक़ छीन लिए..जिनके जरिए मैं तुम्हारी फ़िक्र करता था या जिनके जरिए अपनी तकलीफ तुमसे कहता था।

आगे बढ़कर मैं शायद उन सारे सपनों को पूरा भी कर लुंगा, जो तुमने मेरे लिए देखे थे...पर तुम्हारे न होने पर क्या वाकई उन सपनों की पूर्णता पर मुझे वो खुशी होगी..जो खुशी हसरतों के अधूरेपन के बावजूद तुम्हारे साथ होने से होती थी। दुनिया की वो कौन-सी चीज है जो तुम्हारे जरिये पैदा किये गये खालीपन को भर पाएगी..या फिर मुझे मेरा वो अस्तित्व दे पाएगी..जो तुम्हारे आने से पहले था। मुस्कुराते चेहरे को देखकर कौन मेरे उस ग़म का आकलन कर पाएगा जो इन हालातों ने पैदा किया है..पर मैं आगे तो बढ़ ही रहा हूँ, जिंदगी कब थमती है।

लोग कहते हैं वक्त के साथ सब ठीक हो जाता है..पर टूटी हुई रस्सी को गांठ से जोड़ने के बाद क्या उसकी नैसर्गिक मजबूती को कभी वक्त दे पाया है...यकीनन वक्त के सहलाने वाले हाथ सारे ज़ख्म भर देते है पर ज़ख्म पर छूट गए दाग तो बने ही रहेंगे..जिन्हें देख-देख एक टीस तो ताउम्र उठती रहेगी। हां मुझे याद है जो तुम कहती थी कि एक दिन तो हमें अलग होना ही हैं...मुझे भी बहुत अच्छे से पता था कि ऐसा होगा...पर 'कहने' और 'हो जाने' में बहुत फर्क होता है..जब हम ऐसा कहते थे तब मुझे पता था कि कल का सूरज जब होगा तब हम फिर साथ होंगे...पर अब जबकि ऐसा हो गया है तो कल का सूरज तो क्या जिंदगी की हर प्रभात तुम्हारे बगेर देखना है मुझे...तुम जा चुकी हो पर ये वक्त आगे बढ़ रहा है और आगे बढ़ रहा हूँ मैं भी, इस वक्त के साथ। क्या आगे बढ़ जाने से कसक मिट जाती है?

जब जाना ही था तो क्युं वो सपने देखे थे और दिखाये थे मुझे भी..जिन सपनों को कभी अपने अंजाम तक ही नहीं पहुंचना था। वो सारी अधपकी सी इच्छाएं तो अब भी फसल बनकर दिल की जमीं पर लहलहा रहीं हैं जबकि बंजर हो चुकी है जिंदगी क्योंकि अब नहीं मिलता इसे तुम्हारी नजदीकियों का खाद-पानी। अपने साथ ये तमाम सपने भी क्यों न ले गई..क्यों न ले गई वो जज्बात की दावात..जिसमें लफ्जों की कलम डुबो-डुबोकर, हम लिखा करते थे जीवन की नित नई-नई इबारतें। तुम समझती हो कि मुझे तड़प मिली है तुम्हारे प्यार से, पर नहीं मुझे तड़प है उस नफ़रत के कारण जो आज मेरे दिल में कुलाटियां मारती है हर पल...नहीं, नहीं! ये न समझना कि मुझे तुमसे नफरत है...तुमसे तो आज भी उतना ही प्यार है पर तुम्हारे दिए हुए सपनों से है मुझे असीम नफरत...जो सपने फड़फड़ाते है मेरे दिल की दिवारों पर चमगादड़ बनकर...और उस फड़फड़ाहट के शोर में गुजर जाती है मेरी हर रात...बिना सोये, करवट बदलते।

13 comments:

  1. जब हम ऐसा कहते थे तब मुझे पता था कि कल का सूरज जब होगा तब हम फिर साथ होंगे...........*************

    ReplyDelete
  2. जिंदगी कब थमती है।
    इस जिंदगी का सबसे बड़ा सच भी तो यही है .....

    ReplyDelete
  3. बेहतरीन सुंदर प्रभावी लेखन,,बधाई अंकुर जी,!!!

    RECENT POST: जुल्म

    ReplyDelete
  4. ये लेख संवेदना कि जिस गहराई से लिखा गया है उसे देख नहीं लगता कि ये महज किसी उपन्यास का हिस्सा है...पर यकीन मानिये इस तरह की बातें और तड़प तो हमेशा से बरकरार है पर इन्हें समझने की सामर्थ्य विरले ही लोगों में होती है...उत्कृष्ट प्रस्तुति।।।

    ReplyDelete
  5. चलते रहना ही तो जीवन है ...
    मन में अंदर तक कुरेदता है ये खत ... भावनात्मक सतह पे उतर के लिखा हुआ अंश ...

    ReplyDelete
  6. bahut sunder ankur, jab prakashit karein to jarur batayen

    ReplyDelete
  7. kya baat hai tum teacher se lekhak v ban gaye.
    wese kahna padega bahut aacha likhte ho.........
    nics

    ReplyDelete
    Replies
    1. अजी हम लेखक से टीचर बने थे...टीचर से लेखक नहीं :)

      Delete
  8. स्याह
    चस्पा
    inka meaning kya h ankur ji ??

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्याह- Dark, चस्पा- चिपके।।।

      Delete
  9. ओह कमाल है लेखनी आपकी ..जैसे जैसे पढ़ती जा रही हूँ डूबती चली जा रही हूँ ..उपन्यास पढने की इच्छा बलवती हो उठी है इन्तजार रहेगा ..शुभकामनाये :)

    ReplyDelete
  10. Superb expression…choice of words, Ankur! अन्तिम para तो ग़ज़ब है।

    बस एक बात समझ नहीं आयी…जब उसे पता था कि अलग होना है तो सपने देखे ही क्यों? क्या उस यक़ीन में कोई झूठी उम्मीद थी? क्या उन सपनों में कचास नहीं थी?

    ReplyDelete

इस ब्लॉग पे पड़ी हुई किसी सामग्री ने आपके जज़्बातों या विचारों के सुकून में कुछ ख़लल डाली हो या उन्हें अनावश्यक मचलने पर मजबूर किया हो तो मुझे उससे वाकिफ़ ज़रूर करायें...मुझसे सहमत या असहमत होने का आपको पूरा हक़ है.....आपकी प्रतिक्रियाएं मेरे लिए ऑक्सीजन की तरह हैं-