Thursday, March 26, 2015

ज़ेहन में चस्पा कुछ रोज़...

कुछ तिथियां, बढ़ती ज़िंदगी के साथ आगे चलने से इंकार कर देती हैं और वो वहीं चिपकी रहना चाहती हैं जहाँ वो असल में जन्मी थी। 26 मार्च। एक ऐसी ही तिथि है जो मेरे ज़ेहन में कील की तरह ठुकी हैं भले तारीखें, कैलेण्डर की तरह बदल रही हैं। वैसे आज के संदर्भ में देखा जाये तो ये भारत के वर्ल्डकप सेमीफायनल में हारने के कारण पूरे देश के लिये मायूसी की तिथि है लेकिन मैं इस मायूसी के दरमियाँ खुद को एक साल पहले के उस रोज़ से ज्यादा जुड़ा पा रहा हूँ जहाँ कुछ अनजाने रिश्तों से अथाह अपनापन, प्यार और कद्र पाई थी। जहाँ लोगों के दिलों में मौजूद बेइंतहां खामोश मोहब्बत के दीदार किये थे और जाना था कि आप का होना सिर्फ आपके लिये नहीं कई और लोगों के लिये भी बहुत मायने रखता है। अपने वजूद के मायने पता चले थे और कुछ-कुछ अहम् की अनुभूति भी हुई थी। उस रोज़ को गुज़रे एक साल हो गया... इस बात पर यकीन नहीं होता क्योंकि सभी से रुहानी जुगलबंदी अब भी बेहद मजबूत है।

दरअसल, आज ही के दिन ठीक 1 वर्ष पहले अपने छात्रों और पूर्व कर्मक्षेत्र से मुझे विदाई मिली थी और वो विदाई कुछ ऐसी थी जिसके बाद मैं खुद को उस परिसर और उस परिसर के लोगों को खुद के ज्यादा करीब महसूस करने लगा था। उस रोज़ पता चला कि आपकी कर्तव्यनिष्ठा और मेहनत भले ही तत्काल अपना परिणाम प्रस्तुत न करे लेकिन देर-सबेर वो कई दिलों में इज़्जत और मोहब्बत बन अठखेलियां करती है। इसकी बानगी को मैं लफ़्जों से ज्यादा बयां नहीं कर सकता। इसलिये इस पोस्ट के साथ दो वीडियो प्रस्तुत कर रहा हूँ जिन्हें देख शायद आप मेरे जज़्बातों को ज्यादा अच्छे से समझ सकेंगे।

और अपने उन तमाम विद्यार्थियों और चाहने वालों से कहना चाहता हूँ कि जो मायने मेरे लिये, उनके दिल में हैं उतने या उससे कुछ ज्यादा ही वे सब मेरे लिये अहमियत रखते हैं। हो सकता है कभी ज़रुरत पढ़ने पर मैं किसी विशेष परिस्थिति में उनके काम न आ सकूं लेकिन तहे दिल से उनकी हर मुश्किल को आसान ज़रुर करना चाहूँगा और अपनी क्षमताओं के अंतिम सिरे तक से उन तमाम लोगों की प्रगति में सहभागी होना चाहूँगा।


साथ ही इन वीडियोस के रूप में दो नायाब तोहफे देने के लिये सभी विद्यार्थियों का शुक्रिया अदा करता हूँ...जिनकी बदौलत आप सबकी अमूल्य यादों का नज़राना हर वक़्त मेरे साथ हैं। पुनः शुक्रिया। अनायास ही एक गीत की पंक्ति याद आ रही है...''अकेला चला था मैं...न आया अकेला, मेरे संग-संग आया तेरी यादों का मेला..मेरे संग-संग आया तुम सबकी यादों का मेला।"
Miss You All :)

4 comments:

  1. कुछ तारीख़ें, वाक़ई ख़ास होती हैं ! सुनहरी याद, सुनहरे पल संजोए हुए ! :)

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  2. Nice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.

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  3. कुछ बातें .. समय कहीं नहीं जाते साथ रहते हैं ...

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  4. आपने तारीखों को और भी यादगार बना दिया है !
    बढ़िया ब्लॉग ,बढ़िया प्रस्तुति I

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