रंगों का त्यौहार होली का इंतज़ार हर किसी को होता है....लेकिन आज के दौर की व्यस्तताएं और दौड़ती- भागती ज़िंदगी ने कहीं ना कहीं इसका उत्साह ज़रूर कम कर दिया है...आज ये महज़ दो दिन की सरकारी छुट्टी बन गई है...ना होली पे भांग का नशा होता है..ना फाग के गीत...और आज के बदले हालातों ने इंसान को मजबूर भी इस कदर कर दिया है कि वो पहले जैसी मस्ती होली पर नहीं ला सकता....होली के रंगों में यदि पानी ना मिलाया जाए...तो रंगों का कुछ असर नहीं रह जाता...लेकिन आज के औद्योगिक युग में हम रंगों में पानी पहले की तरह नहीं घोल सकते...क्योंकि हमारे औद्योगिक विकास में भौगोलिक पतन समाया हुआ है...आज हमारे कुओं..बावड़ीयों, नदी-तालाबों में उतना पानी नहीं...कि हम पहले जैसें पानी को बहा सकें...इंसान ने पहाड़ो को चीरकर..धरती के कलेजे को फाड़कर और जंगलों को आग लगाकर..प्रकृति का इस कदर बलात्कार किया है....कि आज हमें उस धरती के आंचल से पानी को तरसना पड़ रहा है...बृह्मंड के सबसे खूबसूरत ग्रह का श्रंगार ही जिस जल से था, उस श्रंगार को उजाड़ने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी....हालात आज हमारे सामने हैं...होली की ख़ुशियां हम मनाएं, खूब मेवा-मिष्ठान खाएँ और खिलाएं लेकिन रंगों में अनावश्यक पानी को ना बहाएं यही निवेदन है....इसलिए सिर्फ तिलक होली मनाएं.........
होली की ढेरों शुभकामनाएँ.......!!!!!!!!!!!!!
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