तकरीबन २५ वर्ष पहले की वो कड़वी रात का मंजर... जब भी उस रात के चश्मदीतों की आंखों के सामने आता है, दिल सहर उठता है। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ वही काली, दर्दनाक रात की जिसने भोपाल की खुबसूरत फिजा में ज़हर घोला था। उन लम्हों को बीते तो आज ढाई दशक बीत गए, मगर उसका दर्द लोगों के ज़हन में आज भी जीवंत है।
विश्व की सबसे भयानक घटनाओं में से एक भोपाल गैसकांड की आज रजत जयंती पुरी हुई है। लेकिन इसके पीड़ित लोगों को आज भी इंसाफ की गुहार है। न तो अभी तक असल जरूरतमंद लोगों को सही से मुआवजा मिला है, नाही इस त्रासदी के गुनहगार एंडरसन को सजा मिली है। भोपाल की आबो-हवा में अब भी यूनियन कार्बाइड का ज़हर घुला हुआ है। गैस रिसाव वाले क्षेत्र की कॉलोनियों में आज भी लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं।
इस त्रासदी का दंश झेल रहे हजारों लोगों की जिंदगी सिर्फ़ अस्पताल, डाक्टर, जाँच, और दवाओं तक सिमट के रह गई है। लाखों रुपये ये अपने इलाज में खर्च कर चुके हैं, लेकिन अब तक राहत नसीब नही हुई है। अफ़सोस इस बात का है कि जो लोग गैस कांड के क्षेत्र से लाखों दूर रहते थे वे अब तक ४-४ बार इसका मुआवजा ले चुके हैं। लेकिन इसके असली हकदार अभी भी गैस रहत कोष के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहे हैं। कई लोगों ने तो बकरे को अपना लड़का बताकर मुआवजा हथिया लिया है, और गैस कांड कि राहत में मिलने वाला पैसा रायसेन, होशंगाबाद, सीहोर जिले तक के लोगों ने हथियाया है, जो इस त्रासदी से कोशो दूर थे। कहने को तो ७०२ करोड़ रूपए बतौर मुआवजे बांटे जा चुके हैं पर कितना, असल जरूरतमंद लोगों तक पंहुचा कहना मुश्किल है।
सरकारी आंकड़े के अनुसार तकरीबन पाँच लाख लोग इस गैस त्रासदी से पीड़ित हैं मगर मुआवजा पंहुचा केवल तीन-साढ़े तीन लाख लोगों तक...और उनमे कितने असली हैं और कितने फर्जी कौन जानता है? गैस त्रासदी से पीड़ित ५६ कॉलोनियां मानी गई थी मगर मुआवजे में मात्र ३६ कॉलोनियों को शामिल किया गया।
इस गैस त्रासदी पर खूब राजनीती हुई, विवाद हुए, आन्दोलन हुए, प्रदर्शन हुए मगर इंसाफ का मोहताज इन्सान आज भी अपने हक का इंतजार कर रहा है। पीड़ितों की आँखों के आंसू अब सूख गए हैं, लेकिन दिल आज भी बेचैन बना हुआ है। इस त्रासदी में २५ वर्ष पहले लगभग १६००० लोग मरे थे लेकिन लाखों लोग अब भी पल-पल मर रहे हैं।
यूनियन कोर्बोइड जैसे संयंत्र तो आज भी जगह-जगह बिखरे पड़े हैं, जो हर पल जहरीले तत्व प्रकृति में छोड़ रहे हैं। यदा-कदा जयपुर गैस कांड जैसी वारदातें भी सामने आ जाती हैं पर कौन ये सब देखने-सुनने वाला है। जब गैस त्रासदी कि माँ भोपाल गैस कांड पर प्रशासन आँखे मूंदे बैठा है तो दूसरों का तो कहना ही क्या? हमारी आंखों के सामने हमारे विनाश का बिगुल बज रहा है और हम इसे अपना विकास समझकर तालियाँ बजा रहे हैं। इस आधुनिकीकरण के जरिये हम अपनी आने वाली पीड़ी को क्या एक ऐसा माहौल दे पाएँगे, जहाँ साफ पानी-हवा और बेहतर भविष्य हो?
भोपाल गैस कांड का काला अतीत हमें नसीहत देता है, लेकिन ये हमारे ऊपर है कि हम उसे मानते हैं या नही। अंत में इन पंक्तियों के साथ बात ख़त्म करता हूँ-
आसमानों तुम्ही कुछ कहो, मैं बेजुबान हो गया हूँ...ये मंज़र देखकर.
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