फ़िल्मकार प्रीतिश नंदी ने कुछ दिनों पहले एक लेख में लिखा था कि वे जिस बेसब्री से फिल्म 'दबंग' का इंतजार कर रहे हैं ऐसा इंतजार उन्होंने सालो से किसी फिल्म का नहीं किया। कारण-इसके आकर्षक ट्रेलर और सलमानी प्रभाव। ये बात तो तय है कि भले ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पे सफलता के झंडे गाढ़े, लेकिन ये खास गुणवत्तापरक फिल्मों में से एक नहीं होगी। पूरी तरह मसाला, एक्शन फिल्म होगी ये सब जानते हुए भी मैं इसे थियेटर में पहले दिन ही देखना चाहता हूँ...कारण वही- इसका सलमानी प्रभाव।
भारतीय हिंदी सिनेमा के पारंपरिक नायक की छवि का निर्वहन करने वाले सलमान इकलौते कलाकार हैं। दर्शक जिनमे अवतारी पुरुष की कल्पना करते हैं। सलमान की शख्सियत कुछ ऐसी भी रही की वे कभी सुपर सितारों की रेस में शामिल नहीं रहे...उन्हें कतई ऐतराज नहीं कि शाहरुख़ बालीवुड के बादशाह बने रहे, आमिर सबसे बुद्धिजीवी कलाकार माने जाये या अक्षय सबसे ज्यादा कमाई करने वाले स्टार कहलाये। इस बिगड़े शहजादे को तो बस दर्शकों के दिल में रहने से मतलब है। और इसका प्रमाण चाहिए तो आप दबंग की ओपनिंग देख लीजियेगा। 70mm के परदे पर जब अकड़ से भरी चाल के साथ ये बिगडैल एंट्री करता है....तो सारा सिनेमा हाल सीटियों और तालियों से गूँज उठता है।
दरअसल सलमान की अपनी ही अलग USP है जिसके कारण वे पिछले २१ सालो से बालीवुड में मजबूती से बने हुए हैं और अगले ५-६ साल तक तो कोई उनकी जगह छीनता नहीं दिखता। इसका कारण भी साफ है कि सलमान ने अपनी जगह किसी को रिप्लेस करके नहीं बनाई बल्कि उन्होंने अपना एक अलग ही मुकाम निर्मित किया है....तो जब उन्होंने किसी की जगह नहीं छीनी तो कोई उनकी जगह कैसे छीन सकता है। प्रख्यात फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे सलमान के हिंदी सिनेमा के प्रभाव को दक्षिण के रजनीकांत के प्रभाव के समतुल्य आंकते हैं। दोनों ही पारंपरिक नायक है और दोनों ही 'नेकी कर दरिया में डाल' की तर्ज पर दूसरों का भला करने के लिए जाने जाते हैं।
वैसे ये सलमान के लिए ही मै नहीं कह रहा हूँ बल्कि बालीवुड के सभी ४० पार के सितारों की अपनी ही अलग USP है- जिसके दम पर कोई नया सितारा इनके सिंहासनो को नहीं डिगा पा रहा। शाहरुख़ की अपनी अदाए और जुदा स्टारडम है...आमिर को हर चीज में परफेक्शन पसंद है...अक्षय के सामने कोई भी स्क्रिप्ट लाइए वे स्क्रिप्ट के झोल को अपनी अदाकारी और खिलंदड स्वरुप से दबाकर फिल्म चला ले जाते हैं...अजय के गाम्भीर्य और पुख्ता एक्टिंग का कोई जवाब नहीं। यही कारण है रणवीर, इमरान, शाहिद की यदा-कदा चलने वाली तूफानी हवाओं से इन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता।
सलमान की एक और खाशियत रही कि अपने २१ वर्षीय करियर में उन्होंने अपनी छवि कई बार बदली। 'मैने प्यार किया' का रोमांटिक प्रेम 'हम साथ-साथ हैं' के प्रेम और 'बागबान' के आलोक से अलग है....'हम दिल दे चुके सनम' का समीर 'तेरे नाम' के राधे से अलग है....अब ये 'वांटेड' सलमान 'वीर' बनकर 'दबंग' हो गया है। और आज के 'रंग दे बसंती', ' ३ इडियट्स' और 'जब वी मेट' वाले बुद्धिजीवी सिनेमाई माहौल में अतार्किक 'दबंग' पेश कर धूम मचाने को तैयार हैं।
चलिए इस सलमानी प्रभाव का मजा थियेटर में ही लिया जायेगा....अभी के लिए इतना ही....
अंकुर सर आपका फ़िल्मी लेखन के मामलो में कोई जवाब नहीं है....ये समीक्षा भी बिलकुल दबंग अंदाज में लिखी है... वह दिल खुश छोटी दिया आपने... फिल्मो में अपनी रूचि बचपन से नहीं है लेकिन अब आपका लेखन मुझे फिल्मे देखने के लिए प्रेरित करता रहता है ... भविष्य के जय प्रकाश चौकसे का अक्स आपमें शुरू से दिखाई देता है ...इसी तरह लेखन जरी रहे .. मेरी शुभकामनाये आपके साथ है
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