Monday, December 13, 2010

२०११ क्रिकेट विश्वकप और टीम इंडिया की सम्भावनाओं का संसार


टेस्ट क्रिकेट में नम्बर १ और वनडे क्रिकेट में दूसरे पायदान पे विराजी टीम इण्डिया पूरे जोश और जज्बे के साथ वर्ष २०११ में प्रवेश कर रही है...जहाँ उसे विश्वकप जैसी बड़ी अग्निपरीक्षा से गुजरना है। हालिया आंकड़ो और प्रदर्शन को यदि देखा जाये तो लगता है कि ये टीम इण्डिया २४ साल के वनडे विश्वकप के सूखे को दूर करने का माद्दा रखती है।

ऐसा पहली बार हुआ है कि एक ही स्तर की समान क्षमताओं वाली दो टीमे हमारे पास है। अब हमारे पास कप्तानी का विकल्प है, विकेट कीपिंग का विकल्प है, बल्लेबाजी-गेंदबाजी, ओपनर्स, मिडिल ऑर्डर्स हर चीज के विकल्प है। अब हमारे क्षेत्ररक्षक कैच नहीं टपकाते, नाही हमारे बल्लेबाज शुरूआती झटकों के बाद लड़खड़ाते हैं। इस टीम की ताकत अब महज १-२ खिलाडी नहीं, बल्कि पूरी एकादश अब बहुत कुछ कर गुजरने को बेताब रहती है, तो वही टीम से बाहर बैठी बेंच स्ट्रेंथ भी जरा सा अवसर मिलने पर खुद को साबित करने का मौका नहीं गवाना चाहती।

अब हम सिर्फ घर में ही जीतना नहीं जानते बल्कि हमारे रणबांकुरो में विदेशी ज़मीं पर भी विरोधियों को धूल चटाना आता है। हमारे रिकार्ड्स अब सिर्फ ज़िम्बाब्वे और बंगलादेश जैसी टीमों को हराकर ही बेहतर नहीं होते, अब तो हमने आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका को भी हराना सीख लिया है और सामने यदि न्युजीलेंड जैसी टीम आ जाये तो उसकी तो गर्दन ही कलम कर दी जाती है।

ये सारी चीजें टीम इण्डिया के लिए आने वाले विश्वकप में एक ख़ूबसूरत संभावनाओं का संसार निर्मित कर रही हैं और इन्हें देख लगता है कि इन जोशीले जवानो ने क्रिकेट के भगवान मतलब सचिन तेंदुलकर को उनके इस अंतिम विश्वकप में वर्ल्डकप उपहार में देने की ठान ली है। ये युवा खिलाडी न सिर्फ दिमाग से खेलते हैं और नाही सिर्फ दिल से बल्कि इनके पास दिलोदिमाग का सही संतुलन मौजूद है। इस कारण इनके पास जोश, होश, जूनून और जज्बातों का सही तालमेल विद्यमान है जो इन्हें जहाँ जीतने का साहस देता है।

धोनी के ये धुरंधर गुरु गैरी के मार्गदर्शन में पूरे रुतबे के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इन्हें अब सिर्फ जीतना गवारा नहीं है अब ये अधिकार पूर्ण जीत चाहते हैं। यही कारण है कि पहले टेस्ट में आस्ट्रेलिया का सूपड़ा साफ किया फिर वनडे में न्यूजीलेंड का। पिछले २-३ सालो में जो कामयाबी टीम को मिली है वो उससे पहले के १५ सालो में भी नसीब नहीं हुई। इसकी बानगी देखनी है तो इस साल के टेस्ट रिकार्ड पे ही नज़र डाली जा सकती है २०१० में हमने कुल १५ टेस्ट खेले जिनमे ८ जीते और सिर्फ २ हारे। और ये जीत हमने आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, श्रीलंका, न्यूजीलेंड जैसी टीमों को हराके हासिल की। वही वनडे में भी हमने पिछले वर्षों में नेटवेस्ट सीरिज, एशिया कप को जीता तो अफ्रीका, श्रीलंका, आस्ट्रेलिया को कई बार धूल चटाई।

अब हमें जीतने के लिए सचिन-सहवाग के भरोसे रहना जरुरी नहीं है...अब कोहली, रैना, गंभीर में भी विरोधियो के सर में दर्द पैदा करने का दम है। अब कोई टीम शुरूआती विकेट जल्दी-जल्दी गिराके चैन की साँस नहीं ले सकती अब छठवे-सातवे नंबर तक हमारे पास मेच विनर मौजूद है न्युजीलेंड के खिलाफ हालिया संपन्न सीरिज के चौथे मेच में युसूफ पठान ने छठे नम्बर पे उतरकर भारत की प्रस्तावित हार को जीत में बदला। जब उनकी १२३ रनों की पारी की बदौलत टीम ने ३१६ रनों के पहाड़ जैसे स्कोर को फतह किया। पिछले सालो की टीम इण्डिया पे यदि गौर किया जाये तो इस टीम ने सचिन, सहवाग, द्रविड़, गंभीर, धोनी, युवराज जैसे सीनियर खिलाडियों के बिना भी जीत दर्ज की है और इस टीम की औसत उम्र २५-२६ साल के आसपास रही है। और जब कभी सचिन जैसे सीनियर खिलाडी टीम में खेले तो उन्होंने भी वनडे का पहला डबल लगाकर युवाओं में भरपूर उर्जा का संचार किया।

बहरहाल, वर्ल्डकप का काउंटडाउन शुरू हो चूका है, टीम इण्डिया अफ्रीका के दौरे पे है। वर्ल्डकप से पहले अपनी तैयारियों का जायजा लेने का संभवतः अंतिम मौका है, अफ्रीका के खिलाफ जीत दर्ज कर मनोबल को और ऊपर उठाया जा सकता है, लेकिन ध्यान रहे अति आत्मविश्वास घातक हो सकता है। अपनी सफलताओं के खुमार में कही हम अपनी कमियों को न नज़रन्दाज कर दे। आसमान में उड़ना है लेकिन ज़मीन का दामन थाम के....क्योंकि ऊँचाइयों से गिरने पर चोट भी गहरी लगती है।

GO....INDIA GO.......

(मासिक पत्रिका 'पालिटिकल स्पार्क' और समाचार पत्र 'राज एक्सप्रेस' में भी प्रकाशित)

6 comments:

  1. अपनी सफलताओं के खुमार में कही हम अपनी कमियों को न नज़रन्दाज कर दे। आसमान में उड़ना है लेकिन ज़मीन का दामन थाम के....क्योंकि ऊँचाइयों से गिरने पर चोट भी गहरी लगती है...

    बहुत ही गहरी एवं सार्थक बात कही आपने। सुन्दर , सजग करता हुआ आलेख।

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  2. काफी अच्छे खयालात हैं..बढ़िया पोस्ट.

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  3. सार्थक पोस्ट ...हर पहलू विचारणीय है....

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  4. bahut achchi lekhani lagi...... lagta hai jai prakash chaukse se vikrant gupta banne ki bari hai

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  5. अंतिम पंक्तियाँ प्रभावित करती हैं...साधुवाद.

    'सप्तरंगी प्रेम' के लिए आपकी प्रेम आधारित रचनाओं का स्वागत है.
    hindi.literature@yahoo.com पर मेल कर सकते हैं.

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