Friday, January 21, 2011
तुम्हे खोने का ख्याल....(कविता)
खैरियत खफा है हमसे
अब तो यहाँ हाल बेहाल है,
जबाव न अब किसी एक का
हुए खड़े कई सवाल है।
न मिलकर भी बिछड़ने का
होता अक्सर मलाल है,
तुम्हे खोने से भी भयंकर
तुम्हे खोने का ख्याल है। ।
बंद होंठो से भी होती बातें हजारों
बहके कदम अब इन्हें संभालो न यारों,
दिमाग है दीवाना और दिल में सलवटें हैं
नींद न है बिस्तरों पे बस खाली करवटें हैं।
ये कैसी खुश-मिजाजी
जिसमे ख़ुशी है कम और दर्द विशाल है,
तुम्हे खोने से भी भयंकर
तुम्हे खोने का ख्याल है। ।
मंजिल वही है लेकिन रस्ते खो गए हैं
जागे हैं सपने सारे पर हम ही सो गए हैं,
ये तिलिस्मी नीर कैसा जिसे पीके प्यास बढ़ रही है
ये शिखर उत्तंग कैसा छूके जिसे श्वांस चढ़ रही है।
तड़प-बेचैनी-बेखुदी बस यही
इस जज्बात की मिसाल है,
तुम्हे खोने से भी भयंकर
तुम्हे खोने का ख्याल है। ।
खैरियत खफा है हमसे.........
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umeed ka ankuran....
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना...
ReplyDeleteतुम्हे खोने से भी भयंकर
ReplyDeleteतुम्हे खोने का ख्याल है...
जिससे हम बहुत जुड़े हुए होते हैं, उसे खो देने का ख़याल मात्र भी बहुत भयानक होता है।
आज 21/01/2013 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
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