अन्ना की आंधी से सारा देश इस समय प्रभावित है..और सरकार अपने कदम टिकाये रखने के लिए जद्दोज़हद कर रही है। आलम ये है कि अन्ना की इस क्रांति ने सारे देश का माहौल इस समय अन्नामय कर दिया है..अभी की सबसे बड़ी खबर और सबसे बड़ा काम बस अन्ना का अनशन और जन-लोकपाल की बहाली बन चुका है। इसे आजादी की दूसरी लडाई का नाम दिया जा रहा है..जो किसी भी मायने में पहली लडाई से कमतर नहीं है। पहली लड़ाई हमने विदेशी लुटेरों के खिलाफ लड़ी थी..अब ये लड़ाई घर के अन्दर बैठे ठगों से है..और कहते हैं चोरों से ज्यादा सावधान ठगों से रहना चाहिए क्योंकि ठग अपना बना के लूटते हैं।
देश की जनता ने दिखा दिया कि वो बस भारतीय टीम के विश्व कप जीतने पे ही सड़कों पे नहीं आती..उसे खुद का हक मांगने के लिए भी सड़कों पे उतरना आता है...ये भीड़ अब महज भीड़ नहीं रह गयी है ये तो वो सैलाब है जो सरकार ढहाने को तैयार है। सरकार को ये अंदाजा भी न होगा कि एक ७५ साल का बुढा ऐसा कहर ढा सकता है...और कहीं न कहीं सरकार ने ही अन्ना को अपने गले की फांस बना लिया, अनशन रोकने और क्रांति को सीमित करने का हर प्रयास उल्टा साबित हुआ। बाबा रामदेव की तरह अन्ना को भी गिरफ्तार करके सरकार ने सोचा कि इस आन्दोलन को भी उसी तरह दबा देंगे जैसा रामदेव के साथ किया था। लेकिन उनका फैसला आग को हवा देने वाला साबित हुआ...और अब ये आन्दोलन दिल्ली की चार दिवारी से निकलकर सारे राष्ट्र का अहम् मुद्दा बन गया।
इससे कांग्रेस सरकार की राष्ट्रीय शाख न सिर्फ आम जनता की नजरों में धूमिल हुई बल्कि उसके अपने पक्के समर्थक भी उससे रूठ चुके हैं। तो दूसरी ओर विश्वपटल पे भी वो उसकी प्रतिष्ठा में गिरावट आई है। पी.चिदम्बरम, कपिल सिब्बल और अम्बिका सोनी जैसे राजनीतिक धुरंधरों की बयानबाजी ने जनसैलाब को और भड़का दिया..जन मानस को पढने में ये धुरंधर चूक कर गये। सरकार समझ रही है ये जनसैलाब अन्ना के कारण क्रांति पे उतरा है पर ऐसा नहीं है इसका कारण तो भ्रष्टाचार की हदें पार हो जाना है..महंगाई का आसमान पे जाना है, लोगों का जीना दूभर हो जाना है। अन्ना तो बस इस क्रांति के अग्रदूत हैं।
इतिहास से सबक न लेना भी सरकार की एक बड़ी भूल है...ऐसे ही जनसैलाब ने १९७५ में इन्द्रा सरकार को उखाड़ फेंका था और उस आन्दोलन की परिणति आपातकाल के रूप में सामने आई थी। अब एक बार फिर कोई बड़ा परिवर्तन इंतजार कर रहा है। अन्ना का ये आन्दोलन महज उतावलापन नहीं है..ये बहुत व्यवस्थित और दूरदर्शिता के साथ नियोजित आन्दोलन है...जिसमे अन्ना के प्रमुख हथियार किरण बेदी, केजरीवाल और भूषण जैसे दिग्गज है जिनका कुशल प्रवंधन इस आन्दोलन की लौ को बुझने की बात तो दूर, कम तक नहीं होने दे रहा।
इस आन्दोलन का समर्थन कर रही जनता को एक बात और ध्यान रखना भी जरुरी है कि वो महज सरकार पर नारेबाजी करके उसे ही बदलने का प्रयास न करें..स्वयं में भी बदलाव लाये। सरकार के खिलाफ आन्दोलन से ज्यादा जरुरी स्वयं के लिए भी एक आन्दोलन का होना है। सरकार को सदाचार की नसीहत देने से ज्यादा आवश्यकता खुद को भी सदाचारी बनाने की है। हम खुद अपने अन्दर से पहले भ्रष्टाचार का सफाया करें फिर सरकार से इसे दूर करने की मांग करे। हम खुद पहले अपनी जिम्मेदारियों को समझे फिर सरकार से जिम्मेदार होने की अपील करे। अन्यथा ये आन्दोलन भी महज एक छलावा बन के रह जायेगा। अपनी जरूरतों को सीमित कर एक न्यायोचित जीवन ही हमारी महत्वाकांक्षाओं का अहम् हिस्सा हो। तभी वैसा राष्ट्र निर्मित हो सकता है जिसके हम सपने संजो रहे है। देश सरकार के बदलाव से ज्यादा नागरिकों के योग्य बदलाव की दरकार कर रहा है।
अंत में दिनकर की कविता जो उन्होंने जे.पी.आन्दोलन के दरमियाँ पढ़ी थी, से अपनी बात समाप्त करूँगा-
सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।।
सही कहा ...शुरुआत तो हमें खुद से करना होगा ,सार्थक अपील ....आभार
ReplyDeleteदेश को सुखद भविष्य देखने का भी अवसर मिले।
ReplyDeletenice.. keep it up....
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