विवादों
से घिरे आईपीएल के पांचवे संस्करण का अंत होने जा रहा है और इस आईपीएल पांच से
राजस्थान रॉयल बाहर हो चुकी है। सीमित संसाधन और गैरसितारा खिलाडियों से भरी टीम
को राहुल द्रविड़ की कप्तानी भी पार न लगा पाई...लेकिन सारे टूर्नामेंट में राजस्थान
के जुझारू प्रदर्शन ने कई यादगार, रोमांचक मेच बनाये...यूँ तो टीम के सबसे सफल
बल्लेबाज अजिंक्य रहाणे रहे..लेकिन ढलती उम्र में भी राहुल द्रविड़ की जीवटता देखने
लायक रही और उनकी आकर्षक बल्लेबाजी हमें ये गीत गुनगुनाने को मजबूर कर देती है कि “अभी न जाओ छोड़ के,
कि दिल अभी भरा नहीं”
भारतीय
टीम की ‘दीवार’ का रंग धुंधला पड़ गया पर मजबूती आज भी बरक़रार है..और किसी ज़माने
में मैक्ग्राथ, एलन डोनाल्ड, कर्टनी वाल्श जैसे धुरंधर गेंदबाजो के प्रहारों को
सहने वाली ये दीवार आज मलिंगा, डेल स्टेन, ब्रेट ली को भी उसी मुस्तैदी से खेलती
है। सिर्फ संयत बल्लेबाजी ही नहीं, संयत व्यक्तित्व भी द्रविड़ की पहचान है। १६ साल
के क्रिकेट करियर में न कभी द्रविड़ के बल्ले ने आग उगली, न उनकी बातों ने। उनके बल्ले
से सितार की सुरलहरियां प्रवाहित होती थी और वाणी से फूल झड़ते थे। विवादों की गूंज
इस साउंडप्रूफ दीवार में प्रवेश नहीं कर पाई। अपने करियर में मैच फिक्सिंग और चैपल-गांगुली
जैसे विवादों की कीचड़ के बीच भी इन्होंने खुद को कमल की तरह खुद को उस कीचड़ से दूर
रखा।
राहुल
द्रविड़ उन चुनिन्दा खिलाडियों में से थे जिनके परफार्मेंस और फिटनेस में निरंतरता
रही। यही कारण है कि अपने डेब्यू टेस्ट मेच से लेकर लगातार ८४ टेस्ट खेलने का
रिकार्ड इनके नाम है। यह रिकार्ड उनकी मानसिक मजबूती के साथ शारीरिक मजबूती को
दर्शाता है और एक अनुशासित, आदर्श जीवन शैली की ओर इशारा करता है क्योंकि ये
निरंतरता बिना अनुशासन के नहीं आ सकती। उनकी जीवनशैली आज के हुड़दंगी गैर जिम्मेदार
युवा के लिए एक सीख देती है...द्रविड़ उस सदाबहार
फूल की तरह रहे जो मदहोश करने वाली महक तो नहीं बिखेरता लेकिन हर मौसम में खिला
रहना जनता है।
करियर
के शुरूआती दिनों में कई विशेषज्ञों ने द्रविड़ को टेस्ट क्रिकेटर कहकर वनडे मैचों
के लिए अनुपयुक्त घोषित कर दिया था। लेकिन वनडे का भी स्थापित बल्लेबाज बनकर द्रविड़
ने उनके मुंह पे ताला लगा दिया..और वनडे क्रिकेट में १०००० से ज्यादा रन बनाने
वाले चंद वनडे विशेषज्ञ बल्लेबाजों की जमात में शामिल हुए। १९९९ के क्रिकेट
विश्वकप में सचिन तेंदुलकर, ब्रायन लारा, सनत जयसूर्या, रिकी पोंटिंग जैसे धमाकेदार
बल्लेबाज होने के बाबजूद द्रविड़ विश्वकप के टॉप स्कोरर रहे। २००३ के विश्वकप में
विकेटकीपर की समस्या से जूझ रही भारतीय टीम के लिए द्रविड़ ने दस्ताने पहनकर विकेट
के पीछे भी शानदार काम किया। वे सही मायने में टीम के संकटमोचक थे लेकिन इस संकटमोचक
का योगदान हमेशा किसी न किसी वजह से दब जाता था और उन्हें वो तारीफें नहीं मिलती
थी जिसके वे हक़दार थे। ये भूत करियर के शुरुआत से ही उनपे हावी रहा, जब अपने डेब्यू
टेस्ट में ९७ रन की बेहतरीन पारी गांगुली के शतक के नीचे दब गयी। २००१ के ऐतिहासिक
कोलकाता टेस्ट की लाजबाव १८० रन की पारी लक्ष्मण के २८१ रन के आगे धुंधली पड़ गयी। १९९९
विश्वकप में गांगुली के १८३ रन और २००० में सचिन तेंदुलकर के न्यूजीलेंड के खिलाफ
वनडे में बनाये १८६ रन के पीछे दूसरे छोर पे मुस्तैदी से खड़े द्रविड़ के शतक भुला
दिए गए। पाकिस्तान के खिलाफ मुल्तान टेस्ट में सहवाग के ३०९ रन ने और पाकिस्तान के
ही खिलाफ २००६ में द्रविड़-सहवाग के विश्वरिकार्ड ४१० रन की ओपनिंग भागीदारी में
सहवाग के दोहरे शतक ने द्रविड़ के शतक की चमक को फीका कर दिया। ऐसे न जाने कितने
रिकार्ड होंगे जो उस समय किसी न किसी कारण से हमारा ध्यान द्रविड़ की तरफ नहीं खींच
पाए...पर द्रविड़ ने इन सब बातों की परवाह किये वगेर अपना ध्यान सिर्फ अपने खेल पर
लगाया...और इसी जीवटता से खेलते हुए जब उन्हें लगा कि अब उन्हें अपनी जगह नए युवा
खिलाडियों के लिए खाली कर देना चाहिए तब उन्होंने वनडे और टेस्ट क्रिकेट को अलविदा
कह दिया।
दरअसल,
राहुल द्रविड़ अब एक इंसान नहीं एक प्रवृत्ति बन चुके है..और शायद आने वाले
क्रिकेटर्स को यह तालीम दी जाये कि अपने अंदर द्रविड़त्व लाओ। द्रविड़ होने का मतलब
धैर्य, साहस और अनुशासन का होना है..और क्रिकेट के इस जेंटलमेन गेम के लिए इन
गुणों का होना अत्यधिक जरुरी है। क्रिकेट के असली जेंटलमेन बनकर रहे राहुल द्रविड़...धोनी,
सहवाग अगर क्रिकेट की आंधी है तो द्रविड़ वो मधुर हवा है जो रूह को सुकून देती है। द्रविड़ के स्ट्रेट ड्राइव, लेट कट और पुल शाट को देखना लता मंगेशकर के गीतों को
सुनने की तरह राहत का अहसास कराता है।
खैर,
क्रिकेट के इस धुरंधर ने आईपीएल के इस संस्करण में ४५० से ज्यादा रन बनाकर खुद को
क्रिकेट के इस तीसरे फॉरमेट का भी पुरोधा साबित किया। आज उम्र के इस पड़ाव पे आके
भी राहुल ने जिस तरह का प्रदर्शन किया वो ये साबित करता है कि ढलते सूरज में भी
तपिश होती है...उसका प्रकाश और प्रताप रात के चाँद-सितारों से कही ज्यादा होता
है। अपने आगे के करियर को द्रविड़ अनिश्चित बताते है और किसी पूर्वनियोजित योजना
के इतर वे समय की मांग के अनुरूप फैसले लेने को वरीयता देते हैं। क्रिकेट छोड़ने
के बाद द्रविड़ के जीवन की दिशा क्या होगी ये तो वक्त बताएगा पर इतना पता है है कि
अपनी खूबसूरती से संवारी क्रिकेटीय पारी की तरह उनके जीवन की पारी भी बेहद मजबूत
होगी...जिसमे उनके परिवार, मित्र और रिश्ते-नातेदारों की अहमियत सर्वोपरि होगी।
बहुत प्रभावशाली भाषा में आपने राहुल द्रविड़ के बारे में लिखा है और जो लिखा है अक्षरश: सत्य लिखा है...यक़ीनन राहुल द्रविड़ जैसा खिलाडी दुबारा मिलना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है...
ReplyDeleteनीरज
बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
द्रविड़ को सचिन के समय में पैदा नहीं होना चाहिये था
ReplyDeleteyes.....may be kajal jee is right..........
ReplyDeleteregards.
बहुत सच लिखा है आपने द्रविड के बारे में।
ReplyDeleteअच्छा लेख ..बधाई
ReplyDeleteभारतीय क्रिकेट की मजबूत दिवार राहुल के बाद दुबारा नहीं आ सकी है ... ये अपने आप में बड़ा परिचय है उनका ...
ReplyDelete