डार्विन का survival of fittest (शक्तिशाली ही जियेंगे, बाकि हासिये पे फेंक दिए जायेंगे) का सिद्धांत भी इसी ओर इशारा करता है कि भैया शक्ति का संचार अपने अंदर करो और ताकतवरों की ही संगत करो...अपने अंदर शक्ति का उत्सर्जन कर ही आप इस दौर में ज़माने से कदमताल मिलाकर आगे बढ़ पाओगे...लेकिन उस शक्ति के लिए हमें भ्रष्टता की संगत करनी होगी, मूल्यविहीनता का आलिंगन करना होगा, ज़माने के हितों से आँखें मूंद कर स्वार्थी होना होगा...क्योंकि वर्तमान दौर की शक्ति इन्ही सब चीजों में निहित है...और भ्रष्टता के पुजारी ही फल-फूल रहे है...चुनाव आपके हाथ में है..एक तरफ चौंधिया देने वाली भौतिक समृद्धि तो एक ओर फटे हुए सच का दामन थामे अकेले खड़े आप...
बात सच के साथ आमिर के बहुचर्चित शो “सत्यमेव जयते’’ की भी करनी है...बहुत पहले से इस बारे में कुछ लिखने का सोच रहा हूँ...पर आमिर खान का ‘हॉट फेन’ होने के कारण सोचा कि अभी यदि कुछ लिखा तो आमिर के पक्षव्यामोह से ग्रसित होने के कारण संतुलित लेख न लिख पाउँगा...और लेखन में अतिरेक हो जाने का भय बना रहेगा... किन्तु अब चार एपिसोड बीत जाने के बाद भी मुझे यही लग रहा है कि लेखन अतिरेक पूर्ण ही होगा क्योंकि भले इस शो की आलोचना के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं...पर मैं शो के उद्देश्य, और विषय-चयन को महान मानते हुए आमिर का और अधिक कद्रदान हो गया हूँ.....
भ्रूण-हत्या, बालयौन-शोषण, दहेज और चिकित्सातंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को अब तक के चार एपिसोड में प्रस्तुत किया गया है...इन्हें देख कई बार रगों में खून तेज हो जाता है तो कई बार कमबख्त पानी बनकर आँखों से झर भी जाता है...माथे पे सलवटें आ जाती है...तो कई बार शर्म भी कि हम इस माहौल में जी रहे हैं...सच की कड़वाहट गले की नीचे उतरते हुए बहुत तड़पाती है...दिल दिमाग से सवाल पूछता है कि कैसे इंसान इतना बहसी और संवेदनशून्य हो सकता है?
भौतिकता की आस, असीमित इच्छाएं और स्वार्थ अपराधों को जन्म दे रही हैं पर उन अपराधों का रूप इतना भयावह है कि दिल परेशान हो उठता है..हर इंसान अपराधी जान पड़ता है...अपने रिश्ते-नातेदार और करीबी दोस्त भी संदिग्ध निगाहों से देखे जाने लगते हैं...हद इस बात की नहीं कि ये अपराध हो रहे हैं...हद तो तब होती है कि अपराध चौराहों पे नहीं घरों में ही हो रहे हैं...घर में ही हत्या, घरों में ही बलात्कार और घरों के अंदर ही लूट हो रही है...और ये हत्यारे, बलात्कारी और लुटेरे कोई असभ्य, अशिक्षित समाज के नहीं बल्कि सभ्य, सुसंस्कृत, सुशिक्षित समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं...और घर के बाहर इनकी अपनी अलग चमक है, सम्मान है...गोयाकि घर के बाहर चमकीला डिस्टेम्पर है और अंदर की दीवारें उधड़ रही है..ब्रांडेड कमीज के अंदर फटी बनियान है... इंसान का चेहरा उसकी फितरत बयां नहीं कर रहा...चेहरे पे सभ्यता का मुखौटा और दिल में हवस का सांप लहरा रहा है....
आमिर का ये प्रयास सराहनीय है...हालाँकि कुछ लोग इसे उनकी व्यावसायिक बुद्धि मानते है और सिर्फ पैसा कमाना ही एक मात्र उद्देश्य कहते हैं...व्यावसायिकता का होना बुरा नहीं है किन्तु आप उस व्यावसायिकता के जरिये यदि सामाजिक सरोकार का भी कुछ काम कर पाए तो वो उत्तम ही है...सिर्फ धंधा करना और सामाजिक जिम्मेदारी को निभाते हुए बिजनेस करने में फर्क होता है...पैसा कमाना बुरा नहीं है पर आप उस पैसे को कमाने का जरिया किसे बनाते हो ये आपके दृष्टिकोण का परिचायक होता है...शाहरुख खान की आईपीएल वाली टीम भी पैसा कमा रही है और आमिर का सत्यमेव जयते भी..पर दोनों कमाई में फर्क तो है न..और फर्क दोनों के नजरिये में भी है....एक अखवार के संपादक ने कहा था कि सत्यमेव जयते जैसा शो न्यूज चैनल के ४ इंटर्न ही बना सकते हैं...शायद वो सही कह रहे हों..पर क्या वो न्यूज चैनल वाले इतनी व्यापकता दे पाते अपने शो को...शायद नहीं...तो भले आमिर की लोकप्रियता ही इस शो को चर्चित बना रही हो...पर प्रशंसनीय तो ये भी है न कि उन्होंने अपनी लोकप्रियता का प्रयोग किस दिशा में किया...सोनी टीवी पे प्रसारित शो “क्राइम पेट्रोल” भी उम्दा प्रयास है..किन्तु उसका कथ्य कुछ अलग है.....
खैर, इस शो में दिखने वाले कड़वे सच एक बात और बयां करते हैं कि इन सारे अपराधों के पीछे कहीं न कहीं हमारी कमजोर बुनियाद भी जिम्मेदार है...जो हमें अपने परिवार से और प्रारंभिक शिक्षा से मिलती है...बच्चों को बचपन से ही महत्वाकांक्षाऑ का पाठ पढाया जाता है...नाम,पैसा,शोहरत कमाने के लिए ही जीवन है ऐसे उपदेश मिलते हैं...और यही चीज उन्हें अपनी शिक्षा पद्धति से सीखने को मिलती है...पर इन महत्वाकांक्षाऑ में नैतिकता और सामाजिक मूल्य हासिये पे फेंक दिए जाते हैं...गांधीजी कहते थे कि शिक्षा की बुनियाद चरित्र होना चाहिए, बाकि चीजें तो बच्चे अपनी प्रतिभा और माहौल से स्वतः सीख लेंगे...किन्तु शिक्षा ने उस बुनियाद को ही मजबूत बनाने की कोशिश नहीं की..इससे न तो चरित्र विकसित हो पाया नाही दृष्टिकोण व्यापक बन पाया!
बहरहाल, इस शो में नकारात्मकता के साथ कुछ सकारात्मक पहलु भी उजागर किये जाते है पर वो बहुत थोड़े है...और बरबाद होते इस समाज को आबाद करने में नाकाफी हैं...किन्तु वो सकारात्मक प्रयास राहत देते हैं...और ‘कभी तो सवेरा होगा’ की उम्मीद जागते हैं...इन छुटमुट सी रोशनियों का सहारा लेकर हमें भी सच का साथ देना है...और सच को जिन्दा रखने के लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयास करते रहना है...सच पे से विश्वास खो देना कभी समस्या का समाधान नही हो सकता...भले इस डगर में आप अकेले हों लेकिन फिर भी आपको सच का दिया लेके इस घनघोर दुनिया के जंगल में अपने-अपने स्तर पे रोशनी बिखेरते रहना है...आपकी ये रोशनी कभी न कभी, किसी न किसी वन में भटके पथिक की जिंदगी में उजियारा जरुर लाएगी............
लम्बे इंतजार के बाद ही सहीं लेकिन उम्मीद से कहीं ज्यादा बेहतर लेख पढने को मिला........हर बार की तरह इस बार भी यहीं कहना पढेगा कि मैं इतना बेहतर लिख पाता तो शायद यही सब कुछ लिखता.......बहुत ही सटीक आलेख है।
ReplyDeletetum bhi bahut badhiya likhte ho...bas khud ko samajh nahi pate...
Deleteबहुत सुंदर सटीक आलेख,,,,,,
ReplyDeleteआप भी मेरे फालोवर बने तो मुझे खुशी होगी,.....
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
धन्यवाद धीरेन्द्रजी...अवश्य आपका अनुसरणकर्ता बनूँगा
Deletei had seen this weeks show,, but as my personal experience,,My truth and innocence is taken for granted,, and sometimes its treated equivalent to foolishness, sab simplicity aive samjhate hai and sochte isse to araam se pagal bana sakte hai..
ReplyDeleteदुनिया का यही रूप है...हर कदम फूंक-फूंक के रखना होता है...
Deleteबेहद सार्थ और सशक्त लेखन अंकुर...
ReplyDeleteबधाई.
अनु
*सार्थक
Deleteधन्यवाद अनुजी...
Deleteसहमत..
ReplyDeleteविरोध तो जताना ही होगा..
ReplyDeleteजी प्रवीणजी अपने-अपने स्तर पर प्रयास करना जरुरी है...वो विरोधस्वरूप हों तो यही सही....
ReplyDeleteबेहद सार्थ और सशक्त लेखन अंकुर...
ReplyDeleteबधाई.
aapke vichar bahut bahut hi achhe lage
ReplyDeletebahut hi sateek lekhan
badhai
poonam
लंबे समय के बाद अंकुर आपके ब्लॉग पर आया हूं। किंतु निराश हुआ कि आपने इसे लंबे ही समय से अपडेट नहीं किया।
ReplyDeleteअंकुर सरस्वती दरअसल एक बिजनेस वुमैन है। वह अपने डीलर को उत्पाद बेचने के लिए देती है। और डीलर को वह निश्चित समय में निश्चित मात्रा में निश्चित लोगों तक पहुंचाना ही होता है। अगर जरा भी इसमें डीलर कोताही करता है तो सरस्वती उसे वार्निंग देकर काम सुधारने की बात कहती है और अंत में अगर डीलर अपने बिजनेस में परफॉर्म नहीं कर पाता तो वह उससे डीलरशिप वापस ले लेती है। डीलर यानी यानी आम भाषा में कहूं तो लेखक, साहित्यकार या और आम भाषा में कहूं तो कलात्मक या रचनात्मक व्यक्ति। और अंकुर सरस्वती बार-बार चाहती है कि डीलर उसका दिया माल अपने गोदाम(दिमाग) में जमाखोरी न करके बैठ जाए। मेरी बातों का अर्थ समझ गए होगे। मित्र मुमकिन है मजबूरी रही होगी, और बहुत ही भयानक मजबूरी रही होगी। किंतु सरस्वती का दिया माल जमाखोरी करके न बैठना। इसे समाज तक पहुंचाते। रहो आशय है लिखने में सतत बने रहना। बहुत अच्छा।
सर आपके मंतव्य को भलीभांति समझ गया हूं। निश्चित ही कुछ व्यस्तताएं हमारे काम में खलल डालती है लेकिन सच ये भी है कि कई बार हमारा स्वयं का आलस भी उस काम को न कर पाने के लिए ज़िम्मेदार होता है। अतः मैं महज अपनी व्यस्तताओं या समयाभाव को इसके लिए दोषी नहीं कह सकता, मेरा अपने लेखन कार्य में प्रमादी होना भी इसके लिए ज़िम्मेदार हूं। आपको अपना परम हितैशी अग्रज मानते हुए इस हेतु आपसे माफी मांगता हूं कि आपके आशानुरुप कार्य न कर सका। साथ ही निरंतर मुझे प्रेरित करने एवं आवश्यक मार्गदर्शन करने के लिए हृदय से धन्यवाद.....
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ReplyDeletesahi kaha sir apne...aap k is lekh se samaj k un pehluon pe bhi dhyan jata hai jise log aksar nazar andaz kar dete hai.......ek bada sach ye bhi hai ki har ache aur bure kam ki shuruat humare ghar se hi hoti hai.hum hi hai wo jo har galat kam ko shay dete hai jisse ki samne wala aur galat karne k liye protsahit hota hai..udaharan swaroop satyamev jayate ka wo episode jisme mihala shoshan k bare me bataya gaya tha uska conclusion yahi tha ki jab mard ne aurat k sath pehli bar jyatti ki toh use badle me chuppi aur dar mila bus ye use protsahit kiya dubara galat karne ko..agar phli bar me hi wo use rok deti toh aisa kuch nhi hota..aye din rah chalte humare sath galat hota hai but hum log nazar andaz kar dete hai aur ye chiz un logo ko aur galat karne ka badhava deti hai aur dheere dheere yahi ignorence kisi bade kam ko anjam deti hai..agar phli bar me hi usse sabk mil jaye toh wo dubara kisi k sath galat karne se phle dus bar sochega..sach..sach ek kaman me se nikla hua aisa tir hai jo der se hi sahi magar apne nishane pe lagta hai...duniya ki har chiz imandari aur sachchai se mil sakti hai.lekin usme samay aur dhairya chahiye jo aaj k logo me nhi hai.....
Deleteसही कहा आयुषी...चुप्पी साधना किसी समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता...अपने हक के लिए यदि विरोध जताना पड़े तो उसमें किसी को पीछे नहीं रहना चाहिए...अपने विचारों को अपने कॉलेज के ब्लॉग पर विस्तार से व्यक्त करो...परस्पर विचार मंथन और उन के प्रसार से निश्चित ही हम स्वयं के और समाज के विकास में सहभागिता निभा सकते हैं!!!!साथ ही तुम अपनी लेखन शैली में भी उन्नति महसूस करोगी........All the Best..Keep Writing
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