क्रिकेट के भगवान के नाम से संबोधित किये जाने वाले, प्रिय सचिन! पिछले पाँच-छह सालों से आपके क्रिकेटीय करियर में हम आखिरी शब्द सुनते आ रहे हैं..यथा- सचिन का आखिरी इंग्लैँड दौरा, आखिरी आस्ट्रेलिया दौरा, आखिरी वर्ल्डकप, आखिरी वनडे, आखिरी आईपीएल, आखिरी ट्वेंटी-ट्वेंटी आदि। लेकिन इन तमाम आखिरी शब्दों से बहुत ज्यादा अलग है ये सुनना और फिर देखना भी कि सचिन का क्रिकेट में आखिरी दिन। आँखों में आँसू। आपके भी और आपके चाहने वाले लाखों दर्शकों के मन में भी..और ये हों भी क्यों न? हम किसी स्कूल-कॉलेज में बमुश्किल दो-पाँच साल बिताने के बाद विदा होते हैं तो रो पड़ते हैं..और फिर आपके लिये तो क्रिकेट वो फलसफा था जिसे आपने अपनी जिंदगी का लगभग आधा हिस्सा दिया है। आपका पहला प्यार, आपकी गर्लफ्रेंड और असल मायनों में आपकी अर्धांगिनी भी बस क्रिकेट ही तो था..तो फिर कैसे कोई इसे एकदम से छूट जाने पर भावुक न हो..आपके मानसिक धरातल पर इसे छोड़ने की तैयारी तो काफी पहले से होगी लेकिन मानसिक तौर पे की गई समस्त तैयारियां कई बार भौतिक ज़मीन पर नाकाम ही साबित होती हैं और ये बखूब आपके चेहरे से ज़ाया हो रहा था। ठीक वैसे ही जैसे कि दो विरुद्ध सांस्कृतिक परिवेश के प्रेमी-युगल चाहे कितनी भी मानसिक तौर पे संबंध विच्छेद करने की तैयारी कर लें पर संबंध टूटने पे निकली आह को दबाना और अचानक पैदा हुआ खालीपन भरना आसान नहीं होता। आखिर आप कैसे इस अचानक छूटे हुए संबंध की टीस को कम कर पायेंगे..क्योंकि भले ये दुनिया और ये मीडिया आपको भगवान की हजार उपमा देदे पर सच तो यही है न कि आप भी आम इंसानों की तरह भावनाओं का एक पुतला, एक अदद इंसान ही हैं।
आपके क्रिकेटीय सफर में बनाये गये उन तमाम रिकार्डस् का ज़िक्र मैं नहीं करूंगा जिनकी बदौलत आप मास्टर-ब्लॉस्टर और भगवान कहलाते हैं...क्योंकि आपका नाम ले देना ही रिकॉर्डस् का ज़िक्र कर देना है और मैंने कभी महज़ आपके उन जादूई आंकड़ों के कारण आपका सम्मान नहीं किया..आपकी कद्र मैंने हमेशा उस एक अच्छे इंसान के रूप में की है जो असीम लोकप्रियता, अगाध सम्मान और बेइंतहा चाहने वालों को पाने के बावजूद कभी अपने लक्ष्य, अपने ध्येय, अपनी विनम्रता और मानवीयता से नहीं डिगा और आपकी ये भलमनसाहत विदाई के वक्त व्यक्त किये गये आपके वक्तव्य से भी बखूब प्रकट हुई। हाँ ये बात सत्य है कि उस नन्ही उम्र में जबकि मैं क्रिकेट का 'क' भी नहीं जानता था तब मेरे लिये क्रिकेट का मतलब आप ही थे। जिस वक्त आपने अपने करियर की शुरुआत की उस वक्त तो मैंने अपना होश ही नहीं संभाला था..मेरे लिये तो आपके करियर के बढ़ते जाने का मतलब ही मेरे जीवन का वृंद्धिगत होना रहा है। इसलिय मैं अपनी अदनी सी बौद्धिकता से क्या आपके सूर्य समान विशाल क्रिकेटीय करियर को दीपक दिखाने की गुस्ताखी करूं। हाँ एक चीज़ को ज़रूर बयां करना चाहुँगा क्योंकि उसे मैं समझ सकता हूँ कि आपने इस क्रिकेटीय जीवन के लिये किस बहुमूल्य चीज़ का त्याग किया है- और वो है अपना बचपन और अपनी बिंदास जवानी।
जिस नादान उम्र में बच्चे छोटी-छोटी सी ज़िद और गुडडे-गुड़ियों के खेल में ही मशरूफ रहते हैं तब आपके हाथ में बल्ला था..जिस उम्र में नितांत मनमौजीपन होता है तब आप सुवह-शाम क्रिकेट के मैदान पे पसीना बहाया करते थे। जिस उम्र में जवानी की दहलीज़ पे कदम रखता एक युवा कॉलेज की अल्हड़ मस्तियों में डूबा रहता है, गर्लफ्रेंड, दोस्तों के साथ मस्ती, पार्टी और बंजारेपन की रंगीनियों में रंगा रहता है उस उम्र में आप देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे..और एक बड़ी भारी जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाये हुए थे। जिंदगी के ये छोटे-छोटे मगर बेहद अहम् जज्बातों के साथ कॉम्प्रोमाइज़ करना कभी भी किसी इंसान के लिये आसान नहीं होता..लेकिन आपने अपनी जिंदगी के इस दौर में अपना सर्वस्व क्रिकेट को सौंप दिया था..और आपके इसी समर्पण, एकाग्रता और इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि आज आपको वो सब मिला जिसकी उम्मीद किसी इंसान को स्वप्न में भी नहीं होती। लेकिन एक अहम् बात ये भी है कि जो अकूट दौलत, सम्मान और यश आपको मिला है आपने कभी भी उसे नहीं चाहा..आपने तो बस एक क्रिकेट को चाहा और अपने लक्ष्य के प्रति किये गये शिद्दत से समर्पण ने आपको वो सब दिया जिसे देख लोग बौराये फिरते हैं। आपकी इस क्रिकेटीय निष्ठा को ही हमारा सैल्युट है अगर ये निष्ठा हर इंसान के पास आ जाये तो दुनिया में ऐसी कोई भी मंजिल नहीं जिसे लोग हासिल न कर पाये। वास्तव में कमी हममें ही होती है और हम अक्सर दोष बाहरी चीज़ों को देते हैं। हमें मंज़िल की चमक दिखाई देती है और हम उस मंजिल की चकाचौंध को ही पसंद करते हैं पर कभी भी हमें रास्तों का संघर्ष नज़र नहीं आता यही कारण है कि हमारी निष्ठा उस संघर्ष, उन प्रयासों में नहीं होती..जिन प्रयासों से अभीष्ट मंजिल की प्राप्ति होती है।
एक बात और कि मैंने कभी आपको भगवान की तरह नहीं माना..आप मेंरे लिये अपनी तमाम क्षमताओं का सदुपयोग करने वाले एक अच्छे इंसान ही रहे हैं..यही वजह है कि जब आप अच्छा नहीं खेलते थे तो आपके लिये भला-बुरा भी बहुत बोला है...लेकिन जब भी अच्छा खेले हैं तो आपको सिर-आंखों पे बैठाया है। आपको खेलते देखना मुझे जितना पसंद था उतना ही पसंद आपको सुनना भी है..क्योंकि आपकी मासुमियत और छलरहित इंसानियत आपके शब्दों से बखूब बयाँ होती है। एक अफसोस ज़रूर है कि कभी आपको सीधे मैदान पर जाकर खेलते हुए नहीं देख पाया..2006 की चैंपियंस ट्राफी के जिस इकलौत मैच को मैंने मैदान में जाकर देखा है उसमें आप किसी कारण वश नहीं खेले थे। इसलिये ये मलाल हमेशा रहेगा। लेकिन आपकी ऐसी असंख्य यादें हैं जिन्हें मैं आने वाली पीढ़ियों को सुनाउंगा और उन्हें सुनाते वक्त गर्व से हमारा सीना चौड़ा भी रहेगा कि हमने सचिन को क्रिकेट खेलते देखा है।
आपके जाने के बाद का खालीपन कुछ वक्त तो रहेगा लेकिन फिर ये भी भर जायेगा क्योंकि यही दुनिया की रीत है 'द शो मस्ट गो ऑन'। आपके बनाये रिकॉर्ड्स भी एक एक कर टूटेंगे क्योंकि रिकॉर्ड्स की फितरत ही ये होती है..लेकिन कोई टूटा हुआ रिकॉर्ड और आपकी जगह लेने वाले शख्स के आ जाने के बावजूद कभी आपका कद छोटा होने वाला नहीं है...आज क्रिकेटीय जगत में जो गम पसरा है वो भी इस कारण है कि आपने जो खुशियां दी है उनकी कोई सीमा नहीं रही है और खुशियां जितनी ऊंचाई पे जाकर नीचे उतरती हैं ग़म को भी उतना ही गहरा बना जाती हैं..समय के सहलाने वाले हाथ सारे ग़म भर देते हैं लेकिन उस ग़म से पैदा हुआ खालीपन तो जाते जाते ही जायेगा। सचिन! आप क्रिकेट का मैदान छोड़ सकते हैं हमारे दिल की ज़मीं नहीं........