Friday, May 16, 2014

एक ख़त नरेन्द्र मोदी के नाम

पहले तो मोदी जी बहुत-बहुत बधाई। आपके तकरीबन सभी चुनावी स्लोगन सच साबित हो गये हैं और कुछ को अपने 60 महीनों के कार्यकाल के दौरान आपको सच बनाना है। एक इतिहास बनाकर आपका दल अपने घटक दलों के साथ बिना किसी खींचतान के सरकार बनाने जा रहा है...और निश्चित ही मेरी यानि एक आम भारतीय की अहमियत, जो चुनाव से पहले तक किसी देवता के समतुल्य थी..अब वापस उसी उम्मीदों भरे एक सामान्य इंसान की तरह हो गई है जिसकी बातें न तो ब्रेकिंग न्यूज़ बनती हैं और न ही उन्हे खास तबज्जो देने के बारे में सोचा जाता है..तो फिर मेरा ये ख़त भी निश्चित ही मेरी मानसिक ऊहापोह को कुछ शांत करने के अतिरिक्त और कुछ करने वाला नहीं हैं...लेकिन फिर भी भले मेरा सुर किसी सत्ताधीन हुक्मरान तक पहुंचे या नहीं पर मैं अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल तो करुंगा ही..और आपके तमाम विज्ञापनों में से वो अच्छे दिन लाने वाला विज्ञापन मेरे सपनों को अनायास ही मचलने को विवश भी करता है और बस इन्हीं सब वजहों से एक उम्मीदों भरी चिट्ठी आपके नाम लिख रहा हूँ।

बहुत बुरी हालत है...और इसे मैं क्या बताऊं आपने खुद अपनी चुनावी रैलियों में जा-जाकर जनता को बताया है..पर इन हालातों का ठीकरा अभी तक अपनी विरोधी और पूर्व सत्तासीन पार्टी के सिर मड़कर, आप हिन्दुस्तान को नया सूर्य दिखाने की बात करते थे..सबसे बड़ा युवाशक्ति  वाला देश कहकर आपने हममें हवा भरने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी..पर सच कहूं तो आज देश में युवा ज़रूर हैं पर उनमें शक्ति नज़र नहीं आती। कारण चाहे जो भी हो पर अच्छा ख़ासा परास्नातक पर्यंत शिक्षित एक आम युवा या तो बेरोजगार है..या अपनी योग्यता से कम पाकर मजबूरन संतुष्ट है या फिर किसी समृद्ध घराने का है तो अपनी आजीविका के लिये अमेरिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया की ओर ताक रहा है। हमारे देश में उसकी योग्यता से न्याय करने की सामर्थ्य ही नज़र नहीं आती..और जब देश के संसाधन और हुक्मरान उसकी बुनियादी ज़रूरतें ही पूरी नहीं कर सकते तो उसमें राष्ट्रवाद की भावना का रहना भी खासा मुश्किल है...इस वजह से या तो वो पाश्चात्य संस्कृति का उपासक बन रहा है या गैरसामाजिक हो रहा है या फिर बन रहा है एक अपराधी।

बात सिर्फ युवा तक केन्द्रित नहीं है..दूसरी जगह भी हालत कोई ठीक नहीं है। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं, ग्रामीण, गरीब या मध्यमवर्गीय सभी अपनी-अपनी अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं..क्योंकि देश ने पिछले साठ सालों में न तो समावेशी विकास (inclusive Development) किया है और न ही सतत पोषणीय विकास (Sustainable Development)। भले हमारे राजनेता और अर्थशास्त्री इन दोनों विकास के मॉडलों का अनुसरण करने का कहें पर ये दोनो तरह के विकास मॉडल से देश महरूम ही रहा है..हाँ भले हम GDP में विश्व में 12 वां स्थान और Purchasing Power Parity में तीसरा स्थान रखने की बात करते हों पर मानव विकास सूचकांक में हमारा 135 वा स्थान यह साबित कर देता है कि यहां लोकतंत्र और समाजवाद होने के बावजूद सिर्फ बुर्जुआ वर्ग ने ही अपना विकास किया है..और 25000 के आंकड़े को छूता सेंसेक्स भी उस बुर्जुआ वर्ग के विकास की ही दास्तान सुनाता है..जनता की बड़ी तादाद आज भी सीमित संसाधनों और सीमित सुविधाओं पर ही जीवन बसर कर रही है जबकि समृद्ध वर्ग के पास इतनी प्राप्तियां हैं  कि उन्हें इन सुविधाओं के उल्टी-दस्त लग रहे हैं।

रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सुरक्षा, सांप्रदायिक समरसता जैसे अनेक मुद्दे हैं जिन पर हमारे देश की हालत दयनीय है..और हमें इन तमाम क्षेत्रों में खुद को कही आगे लेकर जाना है। जब इन अंदरुनी परेशानियों से हम निपटने के काबिल होंगे तब कुछ दूसरी समस्याएं अपना मूंह बाये हमारे सामने खड़ी होंगी..देश की विदेश नीति, पड़ोसी मुल्कों से हमारे संबंध, आतंकवाद, नक्सल समस्या, आयात-निर्यात संतुलन, विदेशी ऋण के चलते होने वाला राजकोषीय घाटा, कई प्रदेशों में व्याप्त अलगाववादी समस्याओं से निपटना और विदेशी मुल्कों से होने वाली घुसपैठ जैसी अनेक परेशानियां हैं जिन्हें सुलझाना है...और इन सब समस्याओं की जड़ में छुपी सबसे बड़ी परेशानी भ्रष्टाचार..जो हमारे बीच के ही नीति-निर्माता और उनका क्रियान्वयन करने वाले नौकरशाह लगातार करते रहते हैं और उनकी इन हरकतों के चलते देश निरंतर खोखला हुआ जा रहा है।

इन सबके साथ एक बात का खास ध्यान रखियेगा वो है पर्यावरण। जी हाँ शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में आप इतना मशगूल न हो जाईयेगा कि अपनी प्रकृति और पर्यावरण की ही बलि चढ़ाना पड़ जाये। वैसे भी आपके गुजरात विकास मॉडल पर प्रकृति के साथ छल करने का आरोप लगता आया है तो कहीं अब ऐसा ही आरोप सारे देश में न लगने लगे। वैसे भी हमारे वन संसाधन कम हो रहे हैं, भूमि का कांक्रीटीकरण होने के कारण कृषि योग्य जमीन नही रह गई है और ग्राउंड वाटर कम होने से कई प्राकृतिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है। विकास के चलते निरंतर फैक्ट्रियों, वाहनों, उद्योगों और विलासिता के सामानों से होने वाला कॉर्बन उत्सर्जन वैश्विक मानवीय समस्याओं को पैदा कर रहा है..और चुंकि हमारे पास विश्व की लगभग एक चौथाई जनसंख्या है तो इन समस्याओं के प्रति हमें ही सबसे ज्यादा सतर्क रहने की ज़रूरत है....

अच्छे दिन आने वाले हैं। ये उम्मीदों भरा जुमला सिर्फ एक-आध क्षेत्र के या किसी एक आध वर्ग के उत्थान की इबारत लिखने वाला साबित न हो...इसलिये आप पर बहुत जिम्मेदारी है। हमें विकास दर बढ़ाना है, महंगाई कम करना है, लोगों की क्रय शक्ति में इज़ाफा करना है, अंतर्राष्ट्रीय विसंगतियों से भी निपटना है और अपनी प्रकृति-अपनी धरती को भी संरक्षित करना है ताकि मोदी महज़ इन साठ महीनों के लिये ही नही बल्कि आने वाली साठ पीढ़ियों के लिये वरदान साबित हों...हाँ हमें पता है कि ये काम आप अकेले नहीं कर पायेंगे..ये हम सबको मिलकर करना है लेकिन हमने अब अपना नेता आपको बनाया है इसलिये पथप्रदर्शन भी आपको करना है उस पथ पे आगे भी आपको बढ़ना है और अपने साथ हमें भी उस विकास के पथ पर ले जाना है...उम्मीद है आप ऐसा करेंगे..और ये कमल महज़ कल्पनाओं में ही नहीं बल्कि यथार्थ में भी खुशबु बिखेरने वाला साबित होगा............... 

7 comments:

  1. यह पत्र आप मोदी जी के हिन्‍दी ब्‍लॉग पर भी पोस्‍ट कर दें तो अच्‍छा रहेगा।

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  2. प्रशासन चुस्त-दुरुस्त रहेगा तो सब ठीक ही होगा....बेहद उम्दा लेख और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)

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  3. खुला ख़त ... अच्छे प्रश्न हैं ...
    मोदी जी को अपनी आदत अनुसार सबकी भलाई के लिए काम करना होगा ..

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  4. बेहतरीन आलेख

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इस ब्लॉग पे पड़ी हुई किसी सामग्री ने आपके जज़्बातों या विचारों के सुकून में कुछ ख़लल डाली हो या उन्हें अनावश्यक मचलने पर मजबूर किया हो तो मुझे उससे वाकिफ़ ज़रूर करायें...मुझसे सहमत या असहमत होने का आपको पूरा हक़ है.....आपकी प्रतिक्रियाएं मेरे लिए ऑक्सीजन की तरह हैं-