'इश्क़ तुम्हें हो जायेगा' ये महज मेरे पोस्ट का टाइटल नहीं बल्कि ये अनुलता राज नायर जी की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक का शीर्षक भी है। दरअसल, गर ये किताब न होती तो इस पोस्ट का जन्म ही नहीं होता। इसलिये इस पोस्ट का जन्म उन जज़्बातों के चलते हुआ है जो अनुजी की इस किताब को पढ़ने के बाद पैदा हुए हैं। आगे कुछ लिखने से पहले मैं बता देना चाहता हूँ कि इस पोस्ट को पुस्तक की समीक्षा न समझा जाये...क्युंकि साहित्यिक कसौटी के परे एक काव्यसंग्रह का जो मूल काम होता है वो ये पुस्तक बखूब करती है। जी हाँ जज़्बातों को जिस ढ़ंग से उद्वेलित होना चाहिये वो इस पुस्तक के हर इक वरक् को पलटते हुए महसूस किये जा सकते हैं और हर नज़्म रूह की तह में उतरती हुई खुद से इश्क़ करने को मजबूर करती है।
यूं तो अनुजी से इस ब्लॉग के सायबर संजाल के चलते पहले से ही आत्मीय रिश्ता रहा है और उनकी लेखनी का मैं खासा कायल रहा हूँ औऱ उनकी लिखी रचनाओं की कई पंक्तियों को चुराकर मैंने अपने मस्तिष्क की डायरी मे उकेर रखी हैं और कुछ रचनाएं अंतस की बरनी में रखी-रखी आचार-मुरब्बे में कन्वर्ट हो चुकी है जिनका मूल तो याद नहीं पर उनके अर्थ पूरी संजीदगी से अपना रस देते हैं। मसलन ऐसी ही इक रचना है-
स्नेह की मृगतृष्णा
कभी मिटती नहीं
रिश्तों का मायाजाल
कभी सुलझता नहीं
तो मत रखो कोई रिश्ता मुझसे
मत बुलाओ मुझे किसी नाम से
प्रेम का होना ही काफी नहीं है क्या?
इस रचना का ज़िक्र यूं तो पुस्तक में नहीं है पर मेरी रुहानी अलमारी में बाकायदा कैद है। मुझे नहीं पता कि अनुजी ने इन जज़्बातों को खुद कितना महसूस किया है पर उनके लिखे हर एक हर्फ उस हर इंसान के अहसासों को बयां करते हैं जिसने एक बार भी गर सच्चा इश्क़ किया हो। तो इस तरह ये कविता भले निकली अनुजी की कलम से हों पर ये उनकी तरफ से हर आशिक़ के जज़्बातों का प्रतिनिधित्व मात्र हैं। अनुजी की पुस्तक के पेज नं 93 पे लिखी प्रेम कविता का भाव कुछ ऐसा ही हैं जहाँ वे कहती हैं-
प्रेम कविताओं का
कि जो लिखते हैं
उन्होंने भोगा नहीं होता प्रेम
और जो भोगते हैं
उन्हें व्यर्थ लगता है
उसे यूं
व्यक्त करना....
अनुजी की रचनाओं में जितना कल्पनाओं का आसमान समाया हुआ है उतना ही इनमें यथार्थ का धरातल भी है और वे प्रेम के उन्माद, प्रेम के विरह, प्रेम का पागलपन, मिलन और जुदाई सब कुछ बड़ी संजीदगी से और सौंदर्य के साथ बयां करती हैं। एक बानगी देखिये-
छिपा लेता है अपने पीछे
दर्द के कई-कई बरस
कुछ लम्हों की उम्र ज्यादा होती है, बरसों से।
और कुछ इसी तरह...
यदि प्रेम एक संख्या होती
तो निश्चित ही
विषम संख्या होगी
इसे बांटा नहीं जा सकता कभी
दो बराबर हिस्सों में।
अनुजी अपने इस काव्य संग्रह की शुरुआत में कहती हैं कि 'पढ़ना मुझे तन्हाईयों में कि इश्क़ तुम्हें हो जायेगा' पर इस काव्य संग्रह के पढ़ते वक़्त मैं बड़े असमंजस में रहा कि आखिर तन्हाई कहाँ से लाऊं क्योंकि इन कविताओं से उपजे जज़्बातों ने इस कदर कोलाहल मचाया कि सारी तन्हाई मानो कहीं फना हो गई। लेकिन फिर भी ये कविताएं खुद से इश्क़ करने पे मजबूर कर देती हैं। जो इंसान अभी इश्क़ में है उसे तो इन रचनाओं में अपना आज नज़र आयेगा ही पर जो कभी इश्क़ में था वो भी अपने अतीत को इन रचनाओं के सहारे जियेगा और जो न अभी इश्क़ में है और न ही कभी इश्क़ में था वो भी ऐसे इश्क़ को पाने के लिये उत्कंठित हो जायेगा और यदि उत्कंठित नहीं हुआ तो इन रचनाओं से ही इश्क़ फरमा बैठेगा। इन्हीं सब वजहों से ये काव्यसंग्रह अपने नाम को सार्थक करता है। और प्रेम के अर्थ को कुछ इस तरह तलाशती है-
इसका सीधा अर्थ है
मैं नहीं हूं
कहीं और...
प्रेम पंख देता है
प्रेमी पतंग हो जाते हैंं
और जब ये नहीं रहता
तब लड़ जाते हैं पेंच
कट जाती हैं पतंगे
आपस में ही उलझकर
मैं प्रेम में हूं
इसके कई अर्थ हैं
और सभी निरर्थक।
कविताएं तो बहुत है और समझ नहीं आ रहा कि किस किसका ज़िक्र करुं...पर बेहतर होगा कि मेरी इस पोस्ट से कुछ भी आकलन करने के बजाय आप खुद इसका जायका लें। यकीन मानिये यदि आपकी रूह की जमीन पर थोड़ी सी भी नमी है तो ये आपके अंदर जज़्बातों के कई कई कमल खिलाने का माद्दा रखती है औऱ कौमार्य की दहलीज पे पहुंचे युवाओं के लिये तो ये तकिये के नीचे रखकर सोने वाली पुस्तक है। इन रचनाओं की चासनी में जब अपने जज़्बातों को भीगा हुआ महसूस करेंगे तो रस, निश्चित ही तनिक बड़ जायेगा और इश्क़ तुम्हें हो जायेगा।
ऐसा नहीं कि
जन्म नहीं लेती
इच्छाएं अब मन में
बस उन्हें मार डालना सीख लिया है मैंने
शुक्रिया, ऐ मोहब्बत।
और एक अंतिम रचना याद कर विराम लेता हूँ...बाकी आप खुद इस पुस्तक को पढ़े तो अच्छा होगा और न ही अनुजी का कुछ परिचय देना चाहुँगा। वे मेरे शहर भोपाल की हैं इस कारण आत्मीयता कुछ विशेष है शेष परिचय के लिये उनकी रचनाएं ही काफी हैं। पोस्ट के आखिर में पुस्तक क्रय करने हेतु लिंक प्रोवाइड की गई है। पोस्ट की शुरुआत में भी टाइटल के साथ लिंक संलग्न है-
मैंने बोया था उस रोज
कुछ
बहुत गहरे, मिट्टी में
तुम्हारे प्रेम का बीज समझकर
और सींचा था अपने प्रेम से
जतन से पाला था
देखो
उग आई है एक नागफनी
कहो, तुम्हें कुछ कहना है?
(पुस्तक क्रय हेतु लिंक- इश्क़ तुम्हें हो जायेगा)
अंकुर मेरी इस किताब को जितने लोगों ने भी खरीदा और पढ़ा सभी ने कुछ न कुछ कहाँ ज़रूर......मगर तुम्हारा लिखा मैं चाहती हूँ कहीं सहेज कर रखूं और एक विरासत के तौर पर अपने बच्चों और उनके बच्चों तक पहुंचाऊं कि वे कहें हमारी माँ/ दादी ने एक किताब लिखी थी और उसके बारे में एक ankur jain ने कुछ इस तरह लिखा था......
ReplyDeleteसच बेहद भावुक हो गयीं हूँ तुम्हारा स्नेह देख कर |
अपना लिखा सार्थक हुआ ये मान लिया आज मैंने ...
बहुत बहुत शुक्रिया !!
ढेर सा स्नेह और शुभकामनाएं.
अनु
बहुत सुन्दर कविताओं का अति सुन्दर वर्णन।
ReplyDeleteआप दोनों को बधाई और शुभकामनाएँ।
अनु जी की रचनाओं का कायल रह हूँ मैं भी ... शुरू से ही .... उनकी गहरी, आत्मीय रचनाओं को पढ़ पर अलग ही दौर का एहसास होने लगता है ... आपकी समीक्षा सामयिक है ... बधाई अनु जी को ...
ReplyDeleteआपकी बातों से .... और आपकी पोस्ट से पूर्णत: सहमत हूँ ....
ReplyDeleteअनु दी को एक बार फिर से बधाई
आपका आभार
आपकी समीक्षा पढ़ने के बाद पुस्तक पढ़ने का इरादा और पक्का हो गया है
ReplyDeleteधन्यवाद!