Monday, January 17, 2011

मुझे नफरत है अपने सपनो से...(कविता)


हालाँकि मैं कोई कवि नहीं, न साहित्य जगत में अपनी रचनाओं से कुछ अवदान करने की हिमाकत करता हूँ...बस कभी-कभी कुछ बेचैनियाँ तंग करती है तो उन्हें कागजों पे उतारने की निरर्थक कोशिश कर लेता हूँ...उन बेचैनियों को मेरे मित्र कविता कह देते हैं...और मैं भी मजबूरन उनकी ये बात मान लेता हूँ- बहरहाल ऐसी ही एक बेचैनी प्रस्तुत है जिसे मजबूरन आपको झेलना पड़ेगा...

वे हर रात
ड़डाते हैं मेरी
दिल
की दीवारों पर
चमगादड़ बनकर
और
उस ड़फड़ाहट के
शोर में नहीं सो पाता मैं, अपने सपनों के चलते
मुझे
नफरत है अपने सपनों से
कही कुछ पाने के
बहुत दूर जाने के
इस
दुनिया पे छाने के
सपने
ही हैं
जो
जगाये रखते हैं मुझे
मुझे
नफरत है अपने सपनो से
इन सपनो में समायी
आस
की ज्वाला
जलाती
है मुझे
हर
पल-हर छिन
एक
प्यास
जो
बुझती कभी
बस
बढती है
हर
पल-हर दिन,
इन
सपनो की आस में
मिटने वाली प्यास में
गुजर
जाती है
मेरी
एक और रात
यूँ
ही
बिना
सोये
करवट
बदलते। । ।

10 comments:

  1. ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना जिसके बारे में जितना भी कहा जाए कम है! लाजवाब प्रस्तुती!

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  2. अति सुंदर कल्पना-
    और उतनी ही सुंदर अभिव्यक्ति-
    बधाई

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  3. वाकई ये सपने सोने नहीं देते ..
    सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  4. हर पल-हर दिन,
    इन सपनो की आस में
    न मिटने वाली प्यास में
    गुजर जाती है
    मेरी एक और रात
    यूँ ही
    बिना सोये
    करवट बदलते।
    ...हर कोई सपना देखता है .....सपने न हों तो फिर जिंदगी जिंदगी कहाँ रहती है.. भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  5. अपनी आदत से बाज नहीं आते सपने हरकत तो करते हैं. अच्छा लगा ये सब पढ़ना. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  6. प्लीज़ अपनी बेचैनियों को यूँहीं शब्द देते रहें... और मुझे तो सपने बहुत अच्छे लगते हैं...
    परन्तु ये पहलू अच्छा लगा...

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  7. अति सुंदर कल्पना- सुन्दर अभिव्यक्ति|

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति|

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