उलझनें बनी हुई, फासले भी जस की तस
मंजिलों को छोड़, आगे रास्ता है बढ़ गया।
देखते ही देखते ये साल भी गुज़र गया......
चल रही है श्वांस, किंतु जिंदगी थमी हुई
रूह की दीवार पर, धूल है जमी हुई।
दाग गहरा छोड़के, देखो! ज़ख्म भर गया।।
देखते ही देखते.....
रंजिशों की मार से, जाने क्या है हो गया
मिल गया जवाब पर, सवाल ही है खो गया।
वक्त को आगे बढ़ा, वो पल वहीं ठहर गया।।
देखते ही देखते......
हो रहा है मिलन, पर बढ़ रहे शिकवे गिले
चीख सन्नाटों की है, सूनी पड़ी पर महफिलें।
ख्वाहिशों का दफन, देखने सारा शहर गया।।
देखते ही देखते.....
होंठ पे मुस्कान है, पर आंख में आंसू भरे
मौत की आहट से ये, मासूम दिल क्युं न डरे?
झोपड़ी खड़ी रही और महल बिखर गया।।
देखते ही देखते....
दिल की दुनिया ढूंढने में, खुद को हम खोने लगे
परम्परा के नाम पर, रुढियां ढोने लगे।
मर्ज़ की दवा थी वो, पर रग़ों में ज़हर गया।।
देखते ही देखते.....
ज़ख्म सीने में लिए, गिरते संभलते हुए, मजबूरी में पड़ा हुआ।
इस भोर में सूरज निकल, इक दिन का क़त्ल कर गया।।
देखते ही देखते ये साल भी गुज़र गया...........
मंजिलों को छोड़, आगे रास्ता है बढ़ गया
देखते ही देखते.......
अंकुर 'अंश'
प्रतीक्षा है सूर्योदय की... नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ....
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण कविता है अंकुर .
ReplyDeleteनया साल आप को भी शुभ और मंगलमय हो.
नूतन वर्षाभिनंदन. नया साल नयी खुशिओं की सौगात लेकर आये.
ReplyDeleteबहुत उम्दा.बेहतरीन श्रृजन,,,,
ReplyDeleteनए साल 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ|
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recent post - किस्मत हिन्दुस्तान की,
बहुत उम्दा उत्कृष्ट प्रस्तुति....आप को नव वर्ष की ढेर सारी बधाईयाँ व शुभकामायें
ReplyDeletehttp://swapniljewels.blogspot.in/2013/01/blog-post.html
उम्दा उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteयह वर्ष सभी के लिए मंगलमय हो इसी कामना के साथ..आपको सहपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ...!!!
har pankti dil me utartee see.....
ReplyDeleteati sunder bhavo kee abhivykti ...
बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteनब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.
उत्तर कम पर प्रश्न अधिक थे,
ReplyDeleteबीत गया अब पिछला साल।
sundar...
ReplyDeleteदिल की दुनिया ढूंढने में, खुद को हम खोने लगे
ReplyDeleteपरम्परा के नाम पर, रुढियां ढोने लगे
बहुत ही सटीक सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
फ़िल्मी हो सकता है!
ReplyDeleteपर आर्ट फ़िल्म जैसा!
ढ़
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थर्टीन रेज़ोल्युशंस
great
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