Friday, October 11, 2013

नारी के प्रति हमारे नज़रिये का आत्मावलोकन

आज सारा विश्व कन्या शिशु दिवस या गर्ल चाइल्ड डे मना रहा है। सन् 2011 से सैंकड़ो दिवसों की तरह संयुक्त राष्ट्र के द्वारा अब एक और दिन को मनाया जाने लगा है। लेकिन आज एक यक्ष प्रश्न हम सब के सामने है कि समाज में नारी की स्थिति सुधारने के उद्देश्य से शुरु हुआ ये दिवस भी कहीं महज़ सेमिनार और चर्चाओं तक ही तो सीमित नहीं रह जायेगा। या फिर असल में ये समाज में सदियों से व्याप्त नारी के प्रति निर्मित दकियानूसी दृष्टिकोण के बदलने में अपनी भूमिका निभाएगा। इन सवालों के जवाब तो हमें वक्त आने पर ही मिलेंगे लेकिन कम से कम अभी हम नारी के प्रति व्याप्त समाज के वर्तमान दृष्टिकोण का तो आत्मावलोकन कर ही सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था समाज रुपी गरुड़ के स्त्री और पुरुष दो पंख होते हैं। यदि एक पंख सबल तथा दूसरा दुर्बल हो तो उसमें गगन को छूने की शक्ति कैसे निर्मित होगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि स्त्री-पुरुष एक ही गाड़ी के दो पहिये हैं। यदि एक भी पहिया कमजोर होगा तो गाड़ी आगे बढ़ेगी कैसे? लेकिन इतिहास गवाह है कि हमारे समाज का नारी के प्रति रवैया हमेशा भेदभावपूर्ण रहा है। नारी को जन्म से लेकर मरण तक समाज की दूसरी पंक्ति की शख्सियत बनकर जीना होता है। हमने सामाजिक ढांचे को कुछ इस कदर गढ़ा है जहाँ नारी खुद माहौल से ये सीख लेती है कि उसकी हस्ती हमेशा पुरुष के बाद ही है..और पुरुष के कारण ही उसका अस्तित्व है। अपने में आई इस हीन भावना का ही फल है कि वो कभी खुद को समतुल्य बनाने के लिये अपनी आवाज बुलंद नहीं करती और न ही कभी अपने साथ हो रहे इस दोहरे बर्ताव पर कोई शिकायत करती नजर आती। अगर ये समाज कदाचित् नारी की प्रशंसा करता भी है तो सिर्फ उसकी भूमिकाओं जैसे-माँ, पत्नी, बहिन या बेटी के रूप में ही प्रशंसा करता है किंतु कभी उसकी एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में प्रशंसा नहीं की गई है।

कहने को हम आज ये जमकर राग आलाप रहे हैं कि आज नारी सशक्त हो रही है। उसकी उन्नति के लिये कई योजनाएं और कार्यक्रम आयोजित हो रहे है। हमने महिला के अधिकारों व कानूनी अधिकारों की रक्षा हेतु वर्ष 1990 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की। स्थानीय स्तर पर महिला की भागीदारी बढ़ाने हेतु पंचायती राज और नगरपालिकाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण दिया। महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करने के लिये केंद्र सरकार ने देश के प्रत्येक राज्य में महिला समाख्या सोसायटी का भी गठन किया। वर्ष 2001 को महिला सशक्तिकरण वर्ष के रूप में मनाया। लेकिन विडम्बना ये रही कि इन तमाम घोषणाओं के बाद इस पर कुछ विशेष कार्य नहीं हुआ। अगर कुछ हुआ भी है तो इस बात को मानना बड़ा मुश्किल है क्योंकि आज भी महिला अपनी परिस्थिति को ही अपने नियंत्रण में नहीं रख पा रही। कभी-कभी तो ये लगता है कि सशक्तिकरण की बात करना कहीं महिलाओं की तात्कालिक सनक तो नहीं है?
      
भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 48 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली महिला का जीवन बहुत कठिन और यातनापूर्ण बनकर रह गया है। आंकड़ो में यदि इस स्थिति को देखा जाये तो प्रत्येक 1000 पुरुषों पर 941 महिला हैं जिनका शैक्षणिक विकास प्रतिशत मात्र 54.16 है। भारतीय संसद में ये दस प्रतिशत भी नहीं है, प्रशासकीय-प्रबंधकीय व व्यवसायिक पदों पर मात्र 2.3 प्रतिशत और अन्य तकनीकी क्षेत्रों में मात्र 20 प्रतिशत प्रतिनिधित्व ही है। ये आंकड़े साफ बता रहे हैं कि महिला वर्ग को किस तरह से समाज की विभिन्न गतिविधियों में हाशिये पर रखा जा रहा है। समाज में कन्या का जन्म मानो अभिशाप माना जाता है यही वजह है कि कन्या भ्रूण हत्या के मामले पिछले कई वर्षों से तेजी से बढ़ रहे हैं। पुत्र को परिवार की संपत्ति और पुत्री को दायित्व के रूप में समझने की मानसिकता सदियों पुरानी है। इस मानसिकता का ही प्रतिफल है कि समाज में बाल-विवाह, स्त्री अशिक्षा, दहेजप्रथा जैसी विसंगतियाँ नज़र आती हैं और नारी के विकास के समस्त वादे झूठे साबित होते हैं। अरस्तु का कहना था कि किसी भी राष्ट्र की स्त्रियों की उन्नति या अवनति पर ही उस राष्ट्र की उन्नति या अवनति निर्भर है। भारत जैसे राष्ट्र में जहाँ हमने अपने देश को भी भारत माँ कहा है, माँ भारती के उच्चारण के साथ हम गौरव का अनुभव करते हैं। ऐसे परिदृश्य में नारी अबला बनी है, अपनी प्रतिकूलता और दुर्दशा पर आँसू बहा रही है। ये राष्ट्र के कष्टदायक हालात को बयाँ करता है।
      
दरअसल आज सरकार या समाज की योजनाओं से ज्यादा ज़रुरी हर एक व्यक्ति की सोच में आमूलचूल परिवर्तन का आना है। हमें तमाम पुरातन मान्यताओं से ऊपर उठकर इस सदियों पुराने भेदभाव को ख़त्म करने के लिये दृढ़ संकल्पित होने की ज़रूरत है। नारी की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और अन्य अधिकारों में व्याप्त सभी तरह के पक्षपात को दूर करने की ज़रूरत है। कहते हैं कि यदि आप एक पुरुष को शिक्षित करते हैं तो मात्र वह पुरुष ही शिक्षित होता है परन्तु एक महिला को शिक्षित करते हैँ तो पीढ़ियां दर पीढ़ियां शिक्षित हो जाती हैं। अतः ज़रूरी ये भी है कि इधर-उधर दृष्टिपात करने की अपेक्षा ये उचित होगा कि महिलाएं स्वयं प्रेरणा से स्वसंगठित होकर आत्मशक्ति के आधार पर सशक्तिकरण की नवीन परिकल्पना की सूत्रधार बनें। इस काम के लिये परम्परावादी व्यवस्था को बदलना होगा, तस्वीर तभी बदलेगी। व्यवस्था को बदलने के लिये संपन्न महिलाओं को, संसाधनों से युक्त महिलाओं को समाज में आगे आकर असहाय, गरीब, अशिक्षित और पीड़ित महिलाओं की रक्षा करनी होगी। वास्तव में सशक्तिकरण का यही स्वरूप ही वास्तविक रूप में भारतीय समाज को नई दिशा दे सकेगा।
      
अगर हम चाहतें है कि देश को कई कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल, सुष्मा स्वराज या किरण बेदी जैसी सशक्त महिलायें मिले तो इसके लिये आवश्यक है कि समाज की मनःस्थिति को जड़ से परिवर्तित किया जाये। समाज में स्थित भेदभाव पूर्ण मानसिकता को प्राथमिक स्तर से दूर किया जाये और इसकी शुरुआत हर एक परिवार तथा हर एक व्यक्ति की सोच में बदलाव से ही संभव है। व्यक्तिविशेष की सोच में आये बदलाव से ही एक संतुलित समाज का निर्माण किया जा सकता है। एक ऐसा समाज जहाँ स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक या एक दूसरे पर आश्रित नहीं होंगे बल्कि एक दूसरे के कदम से कदम मिला, सहयोगी बन समाज के उत्थान की दिशा में कार्य कर सकेंगे।

      
ध्यान रखने वाली बात ये भी है कि महिला के प्रति दया या करुणा वाली सोच विकसित कर महिला के कल्याण के लिये हमें कार्य नहीं करना है बल्कि एक संतुलित और समानता वाला नज़रिया निर्मित कर महिला के विकास की ओर कदम बढ़ाना है क्योंकि कल्याण तात्कालिक और पराश्रित होता है जबकि विकास जीवंत और स्वाश्रित।

12 comments:

  1. सच कहा है, बिना संतुलन कैसे यात्रा संभव है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया प्रवीणजी..

      Delete
  2. Ankur Ji व्यवस्था को बदलने के लिये Thoda Time Lag Sakta Hai, Kyunki Kuch Log Badal Rahe Hain, Lekin Uske Sath-3 Kuch Log Us System ko Bigaad Bhi Rahe Hain.

    ReplyDelete
  3. आपने सच कहा,,,समाज की मनःस्थिति को जड़ से परिवर्तित करना होगा !
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!

    RECENT POST : अपनी राम कहानी में.

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी धन्यवाद..आपको भी शुभकामनाएं।।।

      Delete
  4. सामयिक सत्य ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बिल्कुल..आभार आपका।।।

      Delete
  5. बहुत सुन्दर आलेख आभार !

    ReplyDelete
  6. सारगर्भित आलेख ...
    सच कहा है ,की संतुलन बना कर .... बिना किसी भेदभाव के चलना है अबको ...

    ReplyDelete
  7. धन्यवाद आपका..

    ReplyDelete

इस ब्लॉग पे पड़ी हुई किसी सामग्री ने आपके जज़्बातों या विचारों के सुकून में कुछ ख़लल डाली हो या उन्हें अनावश्यक मचलने पर मजबूर किया हो तो मुझे उससे वाकिफ़ ज़रूर करायें...मुझसे सहमत या असहमत होने का आपको पूरा हक़ है.....आपकी प्रतिक्रियाएं मेरे लिए ऑक्सीजन की तरह हैं-