आईसीसी टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप के फाइनल को गुजरे 3-4 दिन हो चुके हैं...और सब धीरे-धीरे प्रायः फाइनल में मिली हार को भूल से भी गये हैं...पर सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया में युवराज़ सिंह एक विलन की तरह अब भी कोसे जा रहे हैं। तरह-तरह की फब्तियां और जुमले उनके फाइनल में किये प्रदर्शन पर छोड़े जा रहे हैं...और माहौल कुछ ऐसा बना दिया गया है..मानो युवराज़ ने भारत के गोपनीय शस्त्रागारों के ठिकानों की जानकारी शत्रुदेशों को देकर कोई राजद्रोह कर दिया हो। युवराज़ पर व्यंग्य कसने वालों में मैं भी था जिसने भारतीय टीम के हारने पर 15 मिनट के अंदर ही एक फब्तियों को ज़ाहिर करता पोस्ट फेसबुक पर अपडेट किया था..पर लगातार हुए विरोध प्रदर्शन ने मुझे युवराज़ के गुनाह का पोस्टमार्टम करने पर मज़बूर किया और बस इसके चलते ही ये पोस्ट आपके सामने हैं।
युवराज़ सिंह। पिछले चौदह सालों से टीम इंडिया का एक प्रमुख प्रतिनिधि खिलाड़ी..जो अब से 14 वर्ष पहले खेली गई अपनी उस पहली 84 रनों की पारी में ही मुझे अपना कायल कर गया था जो उसने आस्ट्रेलिया के खिलाफ चैंपियंस ट्राफी में बनाये थे। तब से अब तक बीसियों ऐसी पारिया रही है जिन्होंने युवराज को टीम इंडिया का सरताज बना दिया..एक ऐसा खिलाड़ी जिसे दर्जनों बार टीम से बाहर किया गया लेकिन वो हर बार अपनी जीवटता और जुझारु खेल के ज़रिये टीम इंडिया में आया..और अपने समकालीन सभी खिलाड़ियों से अलग अपनी पहचान बरकरार रखी। कई दूसरे खिलाड़ी धूमकेतु की तरह क्रिकेट के इस आकाश में चमकते पर युवराज ध्रुवतारे की तरह हमेशा मद्धम-मद्धम टिमटिमाते रहे। मसलन, उनके साथ ही डैब्यु करने वाले ज़हीर ख़ान कभी लोगों की आंखों के तारे हुए और युवराज़ को बाहर कर दिया गया..इसी तरह मोहम्मद कैफ क्रिकेट के पटल पे अगले अजहरुद्दीन कहलाये और युवराज़ को दूसरी पंक्ति में धका दिया गया। सेहवाग, गंभीर, दिनेश मोंगिया, हेमांग बदानी, रॉबिन उथप्पा और ऐसे न जाने कितने खिलाड़ी आये, अपनी चमक बिखेरी और चले गये पर युवराज हमेशा अपने-आप को टीम में साबित करते रहे और लगातार टीम इंडिया के एक अहम् स्तंभ बने रहे।
आज फिर ऐसा ही एक माहौल है जब युवराज़ के टीम इंडिया में होने पर सवाल खड़े हो रहे हैं...पर ये जुझारु लड़ाका विचलित तो हो सकता है पर चित कभी भी नहीं..क्रिकेट के मैदान में होने वाली जंग ज़िंदगी के मैदान में होने वाली जंग से बहुत छोटी होती है और जो इंसान मौत को ठेंगा दिखाके अपने आत्मविश्वास के साथ वापस अपनी ज़िंदगी को मुख्यधारा में ला सकता है वो दुनिया की किसी भी चीज़ का सामना कर सकता है। युवराज़ एक किंवदंति हैं जिनका क्रिकेट के मैदान में खड़े रह खेलना ही एक प्रेरणादायी फलसफा साबित होगा उनका बेहतर प्रदर्शन करना तो अलग बात है। मैं ये बात उनपे किसी तरह की सहानुभूति जताने के लिये नहीं कह रहा हूँ और न मैं लोगों से ये गुज़़ारिश करता हूँ कि युवराज़ पर सहानुभूति दिखाते हुए उसके टीम में बने रहने की दुआ करें बल्कि मैं ये सब सिर्फ इसलिये कह रहा हूँ कि हम असफलता को देखने का अपना नज़रिया बदलें। निश्चित ही युवराज़ की फाइनल में खेली उस पारी ने ही टीम का मोमेंटम बिगाड़ा और भारत को हार का सामना करना पड़ा..पर ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है। हमेशा तीर निशाने पर तो एकलव्य का भी नहीं लगता। लेकिन हम हवाओं के रुख के हिसाब से चलते हुए सिर्फ जीते हुए के साथ खड़े हो जाते हैं पर असफलता के साथ खड़े होने का माद्दा हममें कब विकसित होगा।
युवराज का गुनाह सिर्फ ये है कि वो उस देश का खिलाड़ी है जहाँ क्रिकेट किसी भी दूसरी चीज़ से बढ़कर है, जहाँ क्रिकेट को लेकर लोग सिर्फ जज्बातों से फैसले करते हैं, जहाँ क्रिकेट जुनून की सारी हदों को तोड़ देता है..और इस खेल में हम सिर्फ सफलता के ही हिमायती हैं और यदि कोई उन बेइंतहा उम्मीदों पर पानी फेर दे तो हम उसे बख्शने के कतई मूड़ में नहीं हैं फिर चाहे उस इंसान ने हमें खुशी के हज़ारों मौके क्यों न दिये हों। नेटवेस्ट ट्राफी-2003 का फाइनल, 2007 टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप, 2011 क्रिकेट वर्ल्ड कप, चैंपियन्स ट्राफी 2002 और ऐसे न जाने कितन मौके हैं जब देश सिर्फ युवराज़ की वजह से झूमा है पर वो तमाम उपलब्धियां, युवराज़ के एक गुनाह के कारण छोटी हो गई...दरअसल, हमें युवराज़ की गिरेबान में झांकना छोड़कर खुद की गिरेवान में झांकने की ज्यादा ज़रूरत है..जो हम स्वार्थ की तमाम हदों को तोड़ते हुए दुनिया के हर उस इंसान से किनारा कर लेना चाहते हैं जो हासिये पर फेंक दिया गया है...उस इंसान के लिये हमारी सहानुभूित तो हो सकती है पर हम साथ देने की जुर्रत कभी नहीं दिखा सकते।
युवराज़ जिस संघर्ष के बाद मैदान में लौटा है उसे कुछ मायने में मैं समझ सकता हूँ क्योंकि ज़िंदगी और मौत की कशमकश से कुछ हद तक मैं भी जूझ चुका हूं..उन हालातों के बाद खुद को संभालकर वापस ज़िंदगी में लौटकर आना बहुत मुश्किल है और जब हम खुद को वापस मुख्यधारा में ला रहे होते हैं तब सबसे ज्यादा आपका आत्मविश्वास वो लोग तोड़ते हैं जो आपके साथ खड़े तो नज़र आते हैं पर बड़ी शालीनता से आपको अापकी कमियों और नाकामयाबियों का आईना दिखाकर दयादृष्टि प्रदर्शित करते हुए छोड़कर चले जाते हैं...और आप एक बार फिर गिरकर, संभलने की जुगत में लग जाते हो। मेरा विश्वास है युवराज़ फिर वापस लौटेगा..और उसका सबसे बड़ा मददगार सिर्फ वही होगा क्योंकि हमारे संपूर्ण सुख, आत्मविश्वास और ताजगी के लिये सिर्फ हम ही ज़िम्मेदार हैं कोई और साथ खड़ा हुआ प्रतीत तो हो सकता है पर वास्तव में साथ होता कोई नहीं।
bhut sanadr sir ji.....................
ReplyDeleteThanx Vivek...
Deleteयुवराज को दोष देने वाले तब कहा थे, जब यही साहसी युवराज वर्ल्ड कप 2011 में नैट प्रैक्टिस के दौरान खून की उल्टियां करने के बाद भी देश के लिए इसीलिए खेलते रहे कि इस बार वर्ल्ड कप भारत लाना है।
ReplyDeleteकहते हुए दुःख हो रहा है लेकिन हमारे देश के क्रिकेट प्रशंसक और आलोचक भी अब बिकाऊ होने लगे है !! सादर ।।
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सही कहा...आभार इस प्रतिक्रिया के लिये।।।
Deleteसही विश्लेषण !!
ReplyDeleteशुक्रिया आपका...
Deleteशुक्रिया आपका...
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