मेरे प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
पिछले तीन सालों में इस ब्लॉग के जरिये मुझे आप सब के रूप में सैंकड़ो नये रिश्ते मिले हैं...खुद को अपने इस ब्लॉग के जरिये, मैं आप सब के परिवार जैसा ही मानता हूँ...आपकी प्रतिक्रियाओं से मिले ऑक्सीजन ने मेरी कलम को नयी ताकत और एक अलग जिंदगी दी है...अब इसी श्रृंख्ला में मैं अपनी कविताओं का..माफ कीजियेगा बेचैनियों का एक बेहद खास गुलदस्ता आप सबके बीच ला रहा हूँ- 'बेचैनियों का गुलदस्ता'। जी हाँ, यही है मेरा नया ब्लॉग।
वैसे मैं आपको बता दूँ, मैं न कोई कवि हूँ, न साहित्य जगत में अपनी रचनाओं से कुछ अवदान करने की हिमाकत करता हूँ...इस गुलदस्ते में सजे हुए गुलों को कविता कहने की गुस्ताख़ी न करें, इन्हें बेचैनियाँ ही रहने दिया जाये...बेचैनियां जिंदगी का सच हैं जो हर जिंदगी के साथ चलती रहती हैं, हर दिल में पलती रहती हैं- अपना रूप बदल-बदलकर। लेकिन इन हालातों के बीच, बेचैनियों से लड़ते हुए भी जिंदगी चलती रहती है..बस यही जिंदगी की सबसे अच्छी बात है और शायद यही सबसे बुरी भी।
बहरहाल, हो सकता है ये बेचैनियाँ आपको पका सकती हैं क्योंकि ये दिमाग से नहीं लिखी गई हैं, अतः इन्हें साहित्यिक पैमानों पर तौलने की कोशिश न करें। अब से पहले ये मेरे दिल और मेरी डायरी में खामोशी से सांसे लिया करती थी..अब इन्हें इस सायबर संजाल पे भी नया ठिकाना दे दिया है..इसके अलावा इन्हें कहीं जगह मिल भी नहीं सकती थी।
उम्मीद है जिस तरह से आपने मेरे 'साला सब फ़िल्मी है' ब्लॉग को प्यार दिया है, वैसा ही प्यार और अपनापन आप मेरे इस नए ब्लॉग को भी देंगे....और ब्लॉग फोलोअर्स बनकर मेरे इस ब्लॉग से भी रिश्ता जोड़े रहेंगे...साथ ही अपनी प्रतिक्रियाऑं से मेरे अच्छे-बुरे का ज्ञान भी मुझे कराते रहेंगे...तो फिर चटका लगते रहे- इस बेचैनियो के गुलदस्ते पर...ये आपके इंतजार में है…।
सादर
अंकुर 'अंश'
पिछले तीन सालों में इस ब्लॉग के जरिये मुझे आप सब के रूप में सैंकड़ो नये रिश्ते मिले हैं...खुद को अपने इस ब्लॉग के जरिये, मैं आप सब के परिवार जैसा ही मानता हूँ...आपकी प्रतिक्रियाओं से मिले ऑक्सीजन ने मेरी कलम को नयी ताकत और एक अलग जिंदगी दी है...अब इसी श्रृंख्ला में मैं अपनी कविताओं का..माफ कीजियेगा बेचैनियों का एक बेहद खास गुलदस्ता आप सबके बीच ला रहा हूँ- 'बेचैनियों का गुलदस्ता'। जी हाँ, यही है मेरा नया ब्लॉग।
वैसे मैं आपको बता दूँ, मैं न कोई कवि हूँ, न साहित्य जगत में अपनी रचनाओं से कुछ अवदान करने की हिमाकत करता हूँ...इस गुलदस्ते में सजे हुए गुलों को कविता कहने की गुस्ताख़ी न करें, इन्हें बेचैनियाँ ही रहने दिया जाये...बेचैनियां जिंदगी का सच हैं जो हर जिंदगी के साथ चलती रहती हैं, हर दिल में पलती रहती हैं- अपना रूप बदल-बदलकर। लेकिन इन हालातों के बीच, बेचैनियों से लड़ते हुए भी जिंदगी चलती रहती है..बस यही जिंदगी की सबसे अच्छी बात है और शायद यही सबसे बुरी भी।
बहरहाल, हो सकता है ये बेचैनियाँ आपको पका सकती हैं क्योंकि ये दिमाग से नहीं लिखी गई हैं, अतः इन्हें साहित्यिक पैमानों पर तौलने की कोशिश न करें। अब से पहले ये मेरे दिल और मेरी डायरी में खामोशी से सांसे लिया करती थी..अब इन्हें इस सायबर संजाल पे भी नया ठिकाना दे दिया है..इसके अलावा इन्हें कहीं जगह मिल भी नहीं सकती थी।
उम्मीद है जिस तरह से आपने मेरे 'साला सब फ़िल्मी है' ब्लॉग को प्यार दिया है, वैसा ही प्यार और अपनापन आप मेरे इस नए ब्लॉग को भी देंगे....और ब्लॉग फोलोअर्स बनकर मेरे इस ब्लॉग से भी रिश्ता जोड़े रहेंगे...साथ ही अपनी प्रतिक्रियाऑं से मेरे अच्छे-बुरे का ज्ञान भी मुझे कराते रहेंगे...तो फिर चटका लगते रहे- इस बेचैनियो के गुलदस्ते पर...ये आपके इंतजार में है…।
सादर
अंकुर 'अंश'
शीघ्र ही वहाँ घूमकर आते हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रवीणजी...
Deleteनये ब्लॉग की बधाई,,,शुभकामनाए,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी पहचान
शुक्रिया धीरेन्द्रजी...
Deleteबिलकुल हो के आते हैं और मिलते हैं आकी बेचेनियों से ...
ReplyDeleteहाहाहा..शुक्रिया नासवाजी.. :)
Deleteनए मंच का स्वागत!!शुभकामनाओं सहित
ReplyDeleteधन्यवाद सुज्ञजी...
Deleteबढ़िया है आपका बेचैनियों का गुलदस्ता।
ReplyDeleteजी धन्यवाद आपका....
Delete